Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०६२) उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण कालो मिच्छत्तमुवणमिय तत्थ पयदकालस्सादि कादूण पुणो देसूणद्धपोग्गलपरियट्ट परिममिय सव्वजहण्णंतोमुत्तमेत्तसेसे सिज्झदव्यए त्ति पडिवण्णसम्मत्तपज्जायम्मि तदुवलंभादो । * सेसाणं कम्माणमुकस्सपदेसुदीरगो केवचिरं कालावो होदि ?
११७. सुगमं । * जहण्णुकस्सेण एयसमओ।
5 ११८. कुदो १ सव्वेसिमप्पप्पणो सामित्तविसये चरिमविसोहिए समुवलद्धजहण्णमावत्तादो।
* अणुकस्सपदेसुवीरगो पयडिउदीरणाभंगो।।
६११९. जहा पयडिउदीरणाए जहण्णुक्कस्सकालणिद्देसो एदेसि कम्माणं कओ तहा एस्थ वि अणुक्कस्सपदेसुदीरणाए कायव्बो, विसेसामावादो ति मणिदं होदि । संपहि आदेसपरूवणमुवरिमं सुत्तपबंधमणुसरामो
*णिरयगदीए मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणताणुबंधीणमुक्कस्स पदेसवीरगो केवचिरं कालादो होदि ?
६१२०. सुगमं । * जहण्णुक्कस्सेण एयसमओ।
उत्पन्न कर और अतिशीघ्र मिथ्यात्वको प्राप्त होकर वहाँ प्रकृत कालका प्रारम्भ कर पुनः कुछ कम अर्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण काल तक परिभ्रमण कर सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्तमात्र कालके शेष रहने पर सिद्ध होगा, इसलिए सम्यक्त्व पर्यायके प्राप्त करने पर उक्त कालकी उपलब्धि होती है।
* शेष कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरकका कितना काल है ?
$ ११७. यह सूत्र सुगम है।। .. * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है।
६ ११८. क्योंकि सभीके अपनी-अपनी स्वामित्व विषयक अन्तिम विशुद्धिका जघन्यपना अर्थात् मात्र एक समय काल तक अस्तित्व पाया जाता है।
* अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका भंग प्रकृति उदीरणाके समान है।
६ ११९. इन कर्मोकी प्रकृति उदीरणाके जघन्य और उत्कृष्ट कालका निर्देश जिस प्रकार किया है उसी प्रकार यहाँ भी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका करना चाहिए, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब आदेशका कथन करनेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धका अनुसरण करते हैं
* नरकगतिमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका कितना काल है ?
६ १२०. यह सूत्र सुगम है। जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । २९