Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए सामित्त
२२१ * मिच्छत्तस्स जहरिणया पदेसुदीरणा कस्स ?
१०२. सुगमं । * सण्णिमिच्छाइटिस्स उकस्ससंकिलिट्ठस्स ईसिमज्झिमपरिणामस्स
वा।
१०३. एत्थ सण्णिणिद्देसो असण्णिपडिसेहफलो। तत्थ जहण्णपदेसुदीरणाणिबंधणसंकिलेसबहुत्ताणुवलंभादो । ण च संकिलेसबहुत्तेण विणा पदेसुदीरणाए जहण्णभावो होदि, विप्पडिसेहादो। अदो चेव मिच्छाइट्ठिविसेसणं सुसंबद्धं, सेसगुणट्ठाणसंकिलेसादो मिच्छाइट्ठिसंकिलेसस्साणंतगुणत्तदंसणादो । तस्सेव संकिलेसबहुत्तस्स विसेसियूण परूवणहमिदमाह-'उकस्ससंकिलिट्ठस्स ईसिमझिमपरिणामस्स वा' त्ति । एतदुक्तं भवति--सामित्तसमए मिच्छाइटिस्स असंखेजलोगमेत्ताणि संकिलेसट्ठाणाणि उक्कस्सट्ठिदिबंधपाओग्गाणि अत्थि, तेसु आवलि. असंअ०भागमेत्तखंडीकयेसु जो चरिमखंडो असंखेजलोगमेत्तपरिणामट्ठाणवूरिदो, तत्थतणसव्वपरिणामेहिं जहणिया पदेसुदीरणा ण विरुज्झदि त्ति । एत्थ चरिमखंडपमाणागमणट्ठमावलि असंखे०भागमेत्तो भागहारो होदि त्ति कत्तो णव्वदे ? सुत्ताविरुद्धपुन्वाइरियवक्खाणादो।
* सम्मत्तस्स जहणिया पदेसुदीरणा कस्स?
* मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेश उदीरणा किसके होती है । $ १०२. यह सूत्र सुगम है।
* उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणामवाले अथवा ईषत् मध्यम परिणामवाले संज्ञी मिथ्यादृष्टिके होती है।
___$ १०३. यहाँ संज्ञी पदका निर्देश असंज्ञियोंका निषेध करनेके लिए किया है, क्योंकि असंज्ञियोंमें जघन्य प्रदेश उदीरणाके कारणभूत संक्लेशबहुत्वका अभाव है। और संक्लेश बहुत्वके बिना प्रदेश उदीरणाका जघन्यपना बनता नहीं, क्योंकि इसका विप्रतिषेध है। और इसीलिए मिथ्यादृष्टि यह विशेषण सुसम्बद्ध है, क्योंकि शेष गुणस्थानोंके संक्लेशसे मिथ्यादृष्टिका संक्लेश अनन्तगुणा देखा जाता है। उसी संक्लेशबहुत्वकी विशेषताका कथन करनेके लिए यह कहा है-'उत्कृष्ट संक्लेशवालेके अथवा ईषत् मध्यम परिणामवालेके ?' उक्त कथनका यह तात्पर्य है कि स्वामित्वके समय मिथ्यादृष्टिके असंख्यात लोकप्रमाण संक्लेशस्थान उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके योग्य होते हैं। उनके आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण खण्ड करनेपर असंख्यात लोकप्रमाण परिणामोंसे आपूरित जो अन्तिम खण्ड प्राप्त होता है उसमेंके सब परिणामोंसे जघन्यप्रदेश उदीरणा विरोधको नहीं प्राप्त होती।
शंका-यहाँ अन्तिम खण्डके लानेके लिए आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण भागहार है, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-सूत्रके अविरुद्ध कथन करनेवाले पूर्वाचार्योंके व्याख्यानसे जाना जाता है । * सम्यक्त्वकी जघन्य प्रदश उदीरणा किसके होती है ?