Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए सामित्तं
विसोहिपाहम्मेणासंखेञ्जगुणत्तदंसणादो त्ति एसो एदस्स सुत्तस्स समुच्चयत्थो ।
* इत्थिवेदस्स उक्कस्सिया पदेस दीरणा कस्स ?
६२ गा० ]
६ ८९. सुगमं ।
* खवगस्स समयाहियावलियचरिमसमयइत्थिवेदगस्स । १९०. जो खवगो अण्णदरकम्मंसियलक्खणेणागंतूणित्थिवेदोदएण खवगसेटिं चढिय अंतरकरणाणंतरं णयुंसय वेदमंतोमुहुत्तेण खविय तदो इत्थिवेदं खवेमाणो समयाहियावलियचरिमसमयइत्थिवेदगभावेणावट्ठिदो तस्स तक्कालोदीरिजमाणासंखेजसमयपबद्धे घेत्तूण पयदुक्कस्ससामित्त होइ ति सुत्तत्थसंबंधो ।
* पुरिसवेदस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरिणा कस्स १ ९१. सुगमं ।
* खवगस्स समयाहियावलियचरिमसमयपुरिसवेदगस्स । ९२. एत्थ विपुव्वं व सुत्तस्स संबंधो कायव्वो । सुगममण्णं । * णवु सयवेदस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा कस्स ? ९३. सुगमं ।
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उदीरणाओंसे यहाँकी प्रदेश उदीरणा विशुद्धिके माहात्म्यवश असंख्यातगुणी देखी जाती है इस प्रकार यह इस सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है ।
* स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ?
$ ८९ यह सूत्र सुगम है ।
* जो एक समय अधिक एक आवलि कालके अन्तिम समय तक स्त्रीवेदी है उस क्षपक होती है ।
$ ९०. जो क्षपक अन्यतर कर्माशिकलक्षणसे आकर और स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणि पर चढ़कर अन्तरकरणके बाद नपुंसक वेदका अन्तर्मुहूर्त में क्षपण कर उसके बाद स्त्रीवेदका क्षपण करता हुआ समयाधिक आवलि काल शेष रहने पर उदीरणाके अन्तिम समयमें स्त्रीवेदके भावसे अवस्थित है उसके तत्काल उदीर्यमाण असंख्यात समयप्रबद्धोंको ग्रहण कर प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है, ऐसा इस सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध है ।
* पुरुषवेदकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ?
$ ९१. यह सूत्र सुगम है ।
* जो समयाधिक एक आवलि कालके अन्तिम समय तक पुरुषवेदी है उस क्षपकके होती है ।
$ ९२. यहाँ भी पहलेके समान सूत्रका सम्बन्ध करना चाहिए । अन्य कथन सुगम है । * नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ?
$ ९३. यह सूत्र सुगम है ।
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