Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा• ६२]
उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए सामित्तं इट्ठिस्स मिच्छत्तपढमद्विदीए समयाहियावलियमेत्तसेसाए पयदुक्कस्ससामित्तं गेण्हामो, व्विलसंजमाहिमुहचरिमसमयमिच्छाइद्विस्स अपुष्वकरणुक्कस्सविसोहीदो एत्थतणविसोहीए अणियट्टिकरणमाहप्पेणाणंतगुणत्तदंसणादो ? एत्थ परिहारो वुच्चदे-एदम्हादो पुन्विलो चेव अपुव्वकरणपरिणामो विसुद्धयरो, संजमपञ्चासत्तिबलेण समुवलद्धमाहप्पनादो । तदो विसयंतरपरिहारेण सुत्तुद्दिट्टविसये चेव पयदुक्कस्ससामित्तमवहारेयव्वं ।
5 ७२. संपहि सम्मत्तस्स पयदुक्कस्समामित्तविसयावहारणमुत्तरसुत्तं भणइ* सम्मत्तस्स उक्कस्सिया पदेसु वीरणा कस्स ?
७३. सुगमं । ___ * समयाहियावलियअक्खीणदसणमोहणीयस्स ।
६७४. जो दंसणमोहणीयक्खवगो अण्णदरकम्मंसिओ अणियट्टिअद्धाए संखेजेसु भागेसु गदेसु असंखेजाणं समयपवद्धाणमुदीरणमाढविय मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणि जहाकम खविय तदो सम्मत्तं खवेमाणो अणियट्टिकरणचरिमसमये सम्मत्तचरिमफालिं णिवादिय कदकरणिजो होदणंतोमुहुत्तं समयाहियावलियअक्खीणदंसणमोहणीयभावेसाथ संयमको प्राप्त होनेवाले मिथ्यादृष्टिके मिथ्यात्वको प्रथम स्थितिमें एक समय अधिक एक आवलिमात्र शेष रहने पर प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वको स्वीकार करते हैं, क्योंकि पहलेके संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके अपूर्वकरणसम्बन्धी उत्कृष्ट विशुद्धिसे यहाँ की विशुद्धि अनिवृत्तिकरणके माहात्म्यसे अनन्तगुणी देखी जाती है ?
समाधान-अब यहाँ इस शंकाके परिहारका कथन करते हैं-इस परिणामसे पहलेका ही अपूर्वकरण परिणामविशुद्धतर है, क्योंकि वह संयमकी प्रत्यासत्तिके बलसे माहात्म्यको लिये हुए है। इसलिए विषयान्तरका परिहार कर सूत्र कथित अधिकारीके ही प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व निश्चित करना चाहिए।
७२. अब सम्यक्त्वके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वके अधिकारीका निश्चय करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ? ६७३. यह सूत्र सुगम है।
* एक समय अधिक एक आवलि कालसे युक्त अक्षीण दर्शनमोही कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टिके होती है।
७४. अन्यतर कर्माशिक जो दर्शनमोहनीयका क्षपक जीव अनिवृत्तिकरणके कालमें संख्यात बहुभाग जाने पर असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणाका आरम्भकर तथा मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका क्रमसे क्षयकर तदनन्तर सम्यक्त्वका क्षय करता हुआ अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें सम्यक्त्वकी अन्तिम फालिका पतन कर तथा कृतकृत्य होकर अन्तर्मुहूर्तके बाद जब एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण कालसे युक्त अक्षीण दर्शनमोहनीयरूपसे अवस्थित हो जाता है तब उसके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है, क्योंकि उसके एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण गुणश्रेणि गोपुच्छाएँ अन्तिम स्थितिमेंसे उदीर्यमाण असंख्यात