Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ ६९. तत्थ उत्तरपयडिपदेसुदीरणाए चउवीसअणिओगद्दारेसु एगजीवेण सामित्तमिदाणिं वत्तइस्सामो त्ति पइण्णावकमेदं । तं पुण सामित्तं दुविहं जहण्णुक्कस्सभेदेण । तत्थुक्कस्ससामित्तमोघेण परूवेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भइण* मिच्छत्तस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा कस्स ?
७०. सुगमं। * संजमाहिमुहचरिमसमयमिच्छाइहिस्स से काले सम्मत्त संजमंच पडिवजमाणगस्स।
७१. जो मिच्छाइट्ठी अण्णदरकम्मंसिओ वेदगसम्मत्तपाओग्गो अधापवत्तापुव्वकरणाणि कादूण संजमाहिमुहो जादो तस्स अंतोमुहुत्तमणंतगुणाए विसोहिए विसुज्झिदूण चरिमसमयमिच्छाइडिभावेणावद्विदस्स पयदुक्कस्ससामित्तं होइ, से काले सम्मत्तेण सह संजमं पडिवजमाणस्स तस्स सव्वुक्कस्सविसोहिदसणादो त्ति एसो एदस्स सुत्तस्स समुदायत्थो । एत्थ पदेसुदीरणा बहुत्तमिच्छिय गुणिदकम्मंसियत्तं किण्ण इच्छिजदे ? ण, परिणामतारतम्माणुविहाइणीए उदीरणाए दव्वविसेसाणवेक्खित्तादो। जइ पदेसुदीरणाए परिणामविसेसो चेव कारणं तो उवसमसम्मत्तेण सह संजमं पडिवजमाणमिच्छा
$ ६९. 'तत्थ' अर्थात् उत्तर प्रकृति प्रदेश उदीरणाके चौबीस अनुयोगद्वारोंमें इस समय एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वको बतलाते हैं इस प्रकार यह प्रतिज्ञावाक्य है। जघन्य और उत्कृष्टके भेदसे वह स्वामित्व दो प्रकारका है। उनमेंसे ओघसे उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा किसके होती है ?
७०. यह सूत्र सुगम है।
* जो अनन्तर समयमें सम्यक्त्व और संयमको प्राप्त होनेवाला है ऐसे संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके होती है ।
- ७१. अन्यतर कर्माशिक वेदक सम्यक्त्वप्रायोग्य जो मिथ्यादृष्टि जीव अधःकरण और अपूर्वकरण करके संयमके अभिमुख हुआ, अन्तर्मुहूर्त काल तक अनन्तगुणी विशुद्धिसे विशुद्ध होकर मिथ्यादृष्टि भावसे अवस्थित हुए उसके अन्तिम समयमें प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता हैं, क्योंकि तदनन्तर समयमें सम्यक्त्वके साथ संयमको प्राप्त होनेवाले उसके सबसे उत्कृष्ट विशुद्धि देखी जाती है यह इस सूत्रका समुच्चय अर्थ है।
शंका-प्रकृतमें प्रदेश उदीरणाके बहुत्वकी इच्छासे गुणितकर्माशिकता क्यों नहीं स्वीकार की गई ?
समाधान--नहीं, क्योंकि परिणामोंके तारतम्यका अनुविधान करनेवाली उदीरणा द्रव्यविशेषोंकी अपेक्षासे रहित होती है।
शंका-यदि प्रदेश उदीरणामें परिणामविशेष ही कारण है तो हम उपशम सम्यक्त्वके