Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
मूलपयडिपदेसउदीरणाए भुजगारे एयजीवेण कालो
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५०. सामित्ताणु० दुविहो णि० – ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह ० भुज० - अप्प ० - अवट्ठि ० कस्स १ अण्णद० सम्माइट्ठिस्स वा मिच्छाइट्ठि० । अवत्त० कस्स १ अण्णद० सम्माइट्ठिस्स । एवं मणु सतिये । आदेसेण णेरइय० मोह० भुज०अप्प ० - अवट्ठि ० कस्स १ अण्णद० सम्माइट्ठि० मिच्छाइट्ठि० । एवं सव्वणिरय - सव्वतिरिक्ख - देवा भवणादि जाव णवगेवजा चि । णवरि पंचिं० तिरि० अपज ० मोह ० भुज ० - अप्प० - अवडि० कस्स १ अण्ण० । एवं मणुसअप ० - अणुदिसादि सम्बट्टा ति । एवं जाव० ।
भुज ० - अप्प०
५१. काला० दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह ० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अवट्ठि० जह० एगस०, ́ उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । अवत्त० जह० उक्क० एस० । एवं मणुसतिये । एवं सव्वणिरय - सव्वतिरिक्ख - मणुस अपज ० - सव्वदेवा त्ति । णवरि अवत० णत्थि । एवं जाव० ।
$ ५०. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश | M मोहनी की भुजगार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणा किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होती है । अवक्तव्यउदीरणा किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होती है । इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणा किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टिक होती है । इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यश्व, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर नौ मैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पचेन्द्रिय तिर्यन अपर्याप्तकों में मोहनीयकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणा किसके होती है ? अन्यतरके होती है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त और अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
$ ५१. कालानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघ मोहनीयके भुजगार और अल्पतर उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित प्रदेशोंके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अवक्तव्यपदके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्य, मनुष्य अपर्याप्त और सब देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवतव्य उदीरणा नहीं है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ — भुजगार और अल्पतर प्रदेशोंकी उदीरणाके योग्य परिणामोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेके कारण यहाँ मोहनीयके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । अवस्थित उदीरणा कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक बननेके कारण इसके उदीरकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। अवक्तव्यपद उपशमश्रेणिसे उतरते समय
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