Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो णेरइय० मोह० जह० अजह० के० खेत्ते ? लोग० असंखे भागे । एवं सव्वणिरयसव्वपंचिंदियतिरिक्ख-सव्वमणुस-सव्वदेवा० त्ति । एवं जाव० ।
३३. पोसणाणु० दुविहो-जह• उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० के० पोसिदं ? लोग० असंखे०भागो। अणुक० सव्वलोगो।
३४. आदेसेण रइय० मोह० उक्क० पदे. केव० पोसिदं ? लोग० असंखे०भागो । अणुक० के० पो० ? लो० असंखे०भागो छ चोद्दस भागा वा । एवं विदियादि सत्तमा त्ति । णवरि सगपोसणं । पढमाए खेत्तं ।
३५. तिरिक्खेसु मोह० उक्क० पदे० केव० पोसि० १ लोग० असंखे०भागो छ चोदस० । अणुक्क० सव्वलोगो । पंचिंदियतिरिक्खतिये मोह० उक्क० पदे० लोग० असंखे०भागो छ चोदस० । अणुक्क० के० पोसिदं ? लोग० असंखे भागो सव्वलोगो वा । पंचिंदियतिरि०अपज०-मणुसअपज० मोह० उक्क० खेत्तं । अणुक्क० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वो । मणुसतिये मोह० उक्क० पदे० लोग० असंखे०भागो।
क्षेत्र है ? लोकका असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है। इसी प्रकार सब नारकी, सब पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च, सब मनुष्य और सब देवोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
३३. स्पर्शनानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
३४. आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए । पहली पृथिवीमें क्षेत्रके समान भंग है।
३५. तिर्यञ्चोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंने सर्व लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यत्रिकमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट