Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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१९२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो७ सव्वजी० केव० १ असंखे०भागो। अणुक्क० असंखेजा भागा । एवं सव्वणिरय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुस-मणुसअपज०-देवा० भवणादि जाव अवराजिदा त्ति । मणुसपज्जत्त-मणुसिणी-सबढदेवा० मोह० उक्क० केव० ? संखे०भागो। अणुक्क० संखेजा भागा। एवं जाव० । एवं जहण्णए वि । णवरि जह० अजहण्णे त्ति भाणिदव्वं । एवं जाव०।
२९. परिमाणाणु० दुविहं-जह० उक्क० । उकस्से पयदं । दुविहो णि०ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० पदे० केत्तिया ? संखेजा' । अणक० केत्तिया ? अणंता । आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क० अणुक्क० के० ? असंखेजा । एवं सव्वणिरय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुसअपञ्ज०-देवा भवणादि जाव अवराजिदा ति । तिरिक्खेसु मोह० उक्क० पदे० केत्ति १ असंखेजा । अणुक्क० केत्ति० १ अणंता । मणुसेसु मोह० उक्क० के० १ संखेजा । अणुक्क० पदेस० के० १ असंखेजा । मणुसपज्ज०मणुसिणी० मोह० उक्क० अणुक्क० के० ? संखेजा । एवं सव्वढे । एवं जाव० । प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागगमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए । मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । तथा इसी प्रकार जघन्यके विषयमें भी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि उत्कृष्ट और अनुत्कृष्टके स्थानमें जघन्य और अजघन्य ऐसा कहलाना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
२९. परिमाणानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए। तिर्यश्चोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त है। मनुष्योंमें मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने है ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिमें जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
१. ता प्रतौ [अ] संखेजा इति पाठः ।