Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपंयडिअणुभागउदीरणाए सामित्त
* संजमाहिमुहचरिमसमयमिच्छाइट्ठिस्स सव्वविसुद्धस्स । $ १२६. मिच्छाइट्ठी संजमाहिमुहो होदूण समयं पडि अनंतगुणविसोहीए विसुज्झमाणो गच्छ जात्र चरिमसमयो ति तेण तस्स संजमा हिमुहचरिमसमयमिच्छा इट्ठिस्स सव्बुकस्सविसोहीए विसुद्धस्स मिच्छत्ताणुभागुदीरणा जहणिया होदि । किं कारणं ? विसोहिपयरिसेण अप्पसत्थाणं कम्माणमणुभागो सुड ओहट्टिऊण हेट्टिमाणंतिमभागसरूवेणुदीरिजदिति । तदो सम्मत्तं संजमं च जुगवं गेण्हमाणचरिमसमयमिच्छा हिस्स जहण्णसामित्तमेदं दट्ठव्वं ।
* सम्मत्तस्स जहण्णाणुभागुदीरणा कस्स ? $ १२७. सुगमं
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* समयाहियावलियअक्खीणदंसणमोहणीयस्स ।
$ १२८. कुदो ? दंसणमोहक्खवयतिव्वपरिणामेहि बहुअं खंडयघादं पाविदूण पुणो अंतोमुहुत्तमेत्तकालमणुसमओवट्टणाए सुड ओहट्टिऊण ट्ठिदसम्मत्ताणुभागविसयउदीरणाए तत्थ जहण्णभावसिद्धीए णिब्बाहमुवलंभादो । एसा समयाहियावलियअक्खीणदंसणमोहणीयस्स जहण्णाणुभागुदीरणा एयडाणिया । एत्तो पुव्विल्लासेसअणुभागुदीरणाओ याणिय- विट्ठाणियसरूवाओ जहाकममणंतगुणाओ । तदो तप्परिहारेणेत्थेव जहण्णसामित्तं गहिदं ।
* संयम अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके होती है । $ १२६. मिध्यादृष्टि जीव संयम के अभिभुख होकर प्रति समय अनन्तगुणी विशुद्धसे विशुद्ध होता हुआ मिथ्यात्वं गुणस्थानके अन्तिम समय तक जाता है, इसलिए संयमके अभिमुख हुए तथा सर्वोत्कृष्ट विशुद्धिसे यिशुद्ध हुए अन्तिम समयवर्ती मिध्यादृष्टिके मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा होती है, क्योंकि विशुद्धिके प्रकर्षसे अप्रशस्त कर्मोंका अनुभाग बहुत कम होकर अन्तिम अनन्तवें भागरूपसे उदीरित होता है । इसलिए सम्यक्त्व और संयमको युगपत् प्रहण करनेवाले अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके यह जघन्य स्वामित्व जानना चाहिए। * सम्यक्त्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ।
$ १२७. यह सूत्र सुगम है ।
* जिसके अभी दर्शनमोहनीयकी क्षपणा सम्पन्न नहीं हुई, किन्तु उसमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष है उसके होती है ।
$ १२८. क्योंकि दर्शनमोहनीयके क्षपकके तीव्र परिणामोंसें बहुत काण्डकघातको प्राप्त कर पुनः अन्तर्मुहूर्तकाल तक प्रति समय अपवर्तनाके द्वारा अच्छी तरह घटाकर स्थित हुए समयक्त्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा वहाँ पर जघन्यरूपसे निर्बाध पाई जाती है । जिसके अभी दर्शनमोहनीयकी क्षपणा पूरी नहीं हुई, किन्तु उसमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष है उसके यह जघन्य अनुभाग उदीरणा एकस्थानीय होती है । इससे पूर्वकी एकस्थानीय और स्थानीय समस्त अनुभाग उदीरणायें क्रमसे अनन्तगुणी हैं, इसलिए उनके निराकरण द्वारा यहाँ पर ही जघन्य स्वामित्व ग्रहण किया है ।