Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए एयजीवेण कालो समया । अणुक० जह० एयस०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । एवं सोलसक०-भय-दुगुंछ । णवरि अणुक० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । एवं हस्स-रदिअरदि-सोग० । णवरि अणुक० जह० एगस०, उक्क० छम्मासं तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । एवमित्थिवेद-पुरिसवेद० । णवरि अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं सागरोवमसदपुधत्तं । सम्म० उक० अणुभागुदी० जह० उक्क० एयस० । अणुक० जह० अंतोमु०, उक्क० छावहिसागरो० आवलियूणाणि । सम्मामि० उक० जह० उक्क० एगस० । अणुक्क० जहण्णुक्क० अंतोमुहुत्तं ।
१७३. आदेसेणणेरइय० मिच्छ०-णस०-अरदि-सोग० उक्क. जह० एयस०, उक्क वे समया । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । एवं सोलसक०-चदुणोक० । णवरि अणुक० जह० एयस०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । सम्म० उक्क० जह० उक्क० एयस० । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । 'जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । इसी प्रकार सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके विषयमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहर्त है। इसी प्रकार हास्य, रति, अरति और शोककी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल हास्य और रतिका छह महीना तथा अरति और शोकका साधिक तेतीस सागरोपम है । इसी प्रकार स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल क्रमसे सौ पल्योपमपथक्त्वप्रमाण और सौ सागरोपम पथक्त्वप्रमाण है। सम्यक्त्वके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल एक आवलि कम छयासठ सागरोपम है । सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ—सव प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकके जघन्य और उत्कृष्ट कालका स्पष्टीकरण चूर्णिसूत्रोंमें किया ही है, इसलिए अलगसे खुलासा नहीं कर रहे हैं । आगे चारों गतियों सम्बन्धी उक्त कालका खुलासा भी सुगम है। इसलिए यदि कहीं किसी प्रकारका विशेष स्पष्टीकरण आवश्यक होगा तो मात्र उसका अलगसे निर्देश करेंगे।
$ १७३. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, अरति और शोकके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है। इसी प्रकार सोलह कषाय और चार नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अनुकृष्ट अनुभागके उदीरकका. जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। सम्क्त्व के उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट
१. ता प्रतौ सागरोवमाणि देसूणणि । एवं इति पाठः।