Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
९ ३३४. कुदो १ सोगोदयस्सेव भयोदयस्स बहुकालपडिबद्धदुक्खुप्पायणसत्तीए
अभावाद ।
* दुगुंछाए उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा ।
$ ३३५. कुदो १ भयोदणेव दुगुंछोदएण मरणाणुवलंभादो । * इत्थिवेदस्स उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीपा
$ ३३६. कुदो ? पुव्विल्लं पेक्खिऊणेदस्स पसत्थभावोवलंभादो ।
* पुरिसवेदस्स उक्कस्सापुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा ।
$ ३३७. कुदो ? इत्थवेदो कारिसग्गिसमाणो । पुरिसवेदो पुण पलालग्गिसमाणो । तेणानंतगुणहीणो जादो ।
* रदीए उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा ।
$३३८. कुदो १ पुंवेदोदयस्सेव रदिकम्मोदयस्स संतावजणणसत्तीए अभावादो । * हस्से उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा ।
$ ३३९. कुदो १ रदिपुरंगमत्तादो ।
* सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्साणुभागुदीरणा अयंतगुणहीणा ।
९ ३४०. कुदो १ विट्ठाणियत्तादो ।
$ ३३४. क्योंकि जिस प्रकार शोकका उदय बहुत काल तक दुःखोत्पादनकी शक्तिसे युक्त है उस प्रकार भयके उदयमें बहुत कालसे प्रतिबद्ध दुःखके उत्पादनकी शक्तिका अभाव है। * उससे जुगुप्साकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।
$ ३३५. क्योंकि भयके उदयके समान जुगुप्साके उदयसे मरण नहीं पाया जाता है। * उससे स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।
$ ३३६. क्योंकि पूर्व के अनुभागको देखते हुए इसमें प्रशस्तभाव पाया जाता है। * उससे पुरुषवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।
$ ३३७. क्योंकि स्त्रीवेद कंडेकी अग्निके समान है, परन्तु पुरुषवेद पलालकी अग्निके समान है। इसलिए यह उससे अनन्तगुणा हीन है ।
* उससे रतिकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।
$ ३३८ क्योंकि पुरुषवेदके उदयके समान रतिकर्मके उदयमें सन्तापको उत्पन्न करनेकी शक्तिका अभाव है ।
* उससे हास्यकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।
$ ३३९. क्योंकि यह रतिपूर्वक होती है ।
* उससे सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । ९ ३४०. क्योंकि यह द्विस्थानीयस्वरूप है ।