Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
१४४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ अप्पणिय० अत्थि, सेसपद० भयणिज्जा । सम्मामि० सव्वपदा० भयणिज्जा । सोलसक०-छण्णोक० सव्वपदा० णिय० अत्थि । एवं तिरिक्खा० ।
३९१. आदेसेण रइय० मिच्छ-सम्म०-सोलसक०-छण्णोक० भुज०अप्प० णिय० अस्थि । सेसपदा० भयणिज्जा । सम्मामि० ओघ । णस० भुज०अप्पद० णिय० अत्थि, सिया एदे च अवविदो च, सिया एदे च अवढिदा च । एवं सव्वणिरय० ।
३९२. पंचिंदियतिरिक्खतिये सम्मामि० ओघं । सेसपयडी० भुज०-अप्प० "णिय० अस्थि । सेसपदा० भयणिज्जा। पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० सव्वपय० भुज०अप्प० णिय० अत्थि, सेसपदा० भयणिजा ।
३९३. मणुसतिये सम्मामि० ओघं । सेसपय० भुज-अप्प० णिय० अस्थि । सेसपदा० भयणिज्जा । मणुसअपज. सव्वपय० सव्वपदा० भयणिज्जा ।
३९४. देवा भवणादि जाव णवगेवजा त्ति सम्मामि० ओघं । सेससगपय० भुज०-अप्प० णिय० अत्थि, सेसपदा० भयणिज्जा । अणुदिसादि सव्वट्ठा ति सगसव्यपय० भुज०-अप्प० णिय० अत्थि । सेसपदा० भयणिज्जा । एवं जाव० । हैं। सोलह कषाय और छह नोकषायोंके सब पदोंके उदीरक जीव नियमसे हैं। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए।
$ ३९१. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सोलह कषाय और छह नोकषायोंके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरक जीव नियमसे हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव भजनीय हैं। सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। नपुसकवेदके भजगार और अल्पतर पदके उदीरक जीव नियमसे हैं, कदाचित् ये नाना जीव हैं और एक अवस्थित पदका उदीरक जीव है, कदाचित् ये नाना जीव हैं और नाना अवस्थित पदके उदीरक जीव हैं। इसी प्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए। ____$ ३९२. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके मुजगार और अल्पतर पदके उदीरक जीव नियमसे हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव भजनीय हैं । पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरक जीव नियमसे हैं । शेष पदोंके उदीरक जीव भजनीय हैं।
-६३९३. मनुष्यत्रिकमें सम्यग्मिथ्यात्वके उदीरकोंका भंग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरक जीव नियमसे है। शेष पदोंके उदीरक जीव भजनीय हैं । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके उदीरक जीव भजनीय हैं।
३९४. सामान्य देव तथा भवनवासियोंसे लेकर नौ प्रवेयक तकके देवोंमें सम्यग्मिथ्यात्वके उदीरकोंका भंग ओघके समान है। शेष अपनी-अपनी प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरक जीव नियमसे है। शेष पदोंके उदीरक जीव भजनीय है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें अपनी-अपनी सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरक जीव नियमसे हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव भजनीय हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।