Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
१७८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो७ संखे०भागवडि-हाणि. दो वि सरिसा संखे-गुणा । संखे०गुणवड्डि-हाणि. दो वि सरिसा संखे०गुणा । असंखे०गुणवड्डि-हाणि० दो वि सरिसा असंखे०गुणा । अणंतगुणहाणि०' असंखे०गुणा । अणंतगुणवड्डि० विसेसाहिया ।
६४८१. सम्म०-सम्मामि०-सोलसक०-अट्ठणोक० सव्वत्थोवा अवढि० । अणंतभागवडि-हाणि दो वि सरिसा असंखे०गुणा । असंखे०भागड्डि-हाणि० दो वि सरिसा असंखेजगुणा । संखे०भागवड्डि-हाणि दो वि सरिसा संखे०गणा । संखेगणवडि-हाणि० दो वि सरिसा संखे०गुणा। असंखेगुणवड्डि-हाणि दा बि सरिसा असंखेगणा । अवत्त० असंखे०गणा । अणंतगुणहाणि० असंखे०गुणा । अणंतगुणवड्डि. विसेसाहिया । एवं तिरिक्खा० ।
४८२. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० सव्वत्थोवा अवत्त० । अवट्ठि० असंखे०गुणा । उवरि ओघं । सम्म०-सम्मामि०-सोलसक०-सत्तणोक० ओघभंगा। णवरि णस० अवत्त० णस्थि । एवं सव्वणिरए । पंचिंदियतिरिक्खतिये मिच्छ० णारयभंगा। रक जीव परस्पर दोनों ही सदृश होकर संख्यातगुणे हैं । उनसे संख्यातमुणवृद्धि और संख्यातगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव दोनों ही परस्पर सदृश होकर संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव दोनों ही परस्पर सदृश होकर असंख्यातगुणे हैं। उनसे अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अनन्तगुणवृद्धि अनुभागके उदीरक जीव विशेष अधिक हैं।
६४८१. सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकपायोंके अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानि अनुभागके उदीरक जीव दोनों ही परस्पर सदश होकर असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानि अनुभागके उदीरक जीव दोनों ही परस्पर सदृश होकर असंख्यातगुणे हैं । उनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानि अनुभागके उदीरक जीव दोनों ही परस्पर सदृश होकर संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव दोनों ही परस्पर सदृश होकर संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव दोनों ही परस्पर सदृश होकर असंख्यातगुणे हैं। उनसे अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अनन्तगुणवृद्धि अनुभागके उदीरक जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए।
$ ४८२. आदेशसे नारकियों में मिथ्यात्वके अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इससे आगेका भंग ओघके समान है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंका भंग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसकवेदका अवक्तव्य पद नहीं है। इसी प्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें मिथ्यात्वका भंग नारकियों
१. ता प्रतौ असखे गुणा । [ अवत्त० असंखे गुणा ] अणंतगुणहाणि० इति पाठः ।