Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२] मूलपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण अंतरं वेव । णवरि अजह० जह० एगस०, उक्क० अप्पप्पणो सगढ़िदी। एवं जाव० ।
१७. अंतरं दुविहं-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० णत्थि अंतरं । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० ।
१८. आदेसेण णेरय० मोह० उक्क० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। एवं सत्तसु पुढवीसु । णवरि सगढिदो । लेकर सर्वार्थ सिद्धि तकके देवोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अजघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ-ओघ प्ररूपणाके स्पष्टीकरणको ध्यानमें रखकर यहाँ खुलासा कर लेना चाहिए।
$ १७. अन्तर दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका अन्तरकाल नहीं है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ-क्षपकसूक्ष्मसाम्परायिक जीवके उक्त गुणस्थानमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहने पर मोहनीयको उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा होती है, इसलिए इसके अन्तरकालका निषेध किया है। तथा जो सूक्ष्मसाम्परायिक उपशमश्रेणिका जीव एक समयके लिए अनुदीरक होकर और दूसरे समयमें मरकर देव हो जाता है उसकी अपेक्षा मोहनीयकी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय कहा है। तथा उपशान्तमोहका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेके कारण मोहनीयकी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है।
१८. आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनीअपनी स्थिति कहनी चाहिए।
विशेषार्थ—किसी नारकीके मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाके योग्य परिणाम एक समयके अन्तरसे हो और किसी जीवके यथायोग्य भवके प्रारम्भ और अन्तमें हो यह दोनों सम्भव हैं । यही कारण है कि यहाँ मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण कहा है। तथा उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जो जघन्य और उत्कृष्ट काल है वही यहाँ अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल है, इसलिए वह उक्त काल प्रमाण कहा है। सातों पृथिवियोंमें अपनीअपनी स्थितिको जानकर मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल ले आना चाहिए । इसके सिवाय अन्य कोई विशेषता नहीं है।