Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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१४८ जयधवलासहिदे कसावपाहुडे
[ वेदगो सम्मामि० खेत्तभंगो। एवं विदियादि सचमा ति । णवरि सगपोसणं । सत्तमाए मिच्छ० अवत्त० खेत्तं । पढमाए खेतं ।।
४०२. तिरिक्खेसु ओघ । णवरि मि. अबतक लोग० असंखे०मागो सत्त चोदस० । सम्म० तिण्णिपद० लोग० असंखे मागो छ चोदस० । अवत्त० खेतं । सम्मामि० खेत्तं । इत्थिषे०-पुरिस. सध्यपद० लोग असंखेमागो सव्वलोगो वा।
$४०३. पंचिंदियतिरिक्खतिये मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक० सव्वपद० लोग. असंखे०भागो सव्वलोगो वा । णवरि मिच्छ० अवत्त० सत्तचोइस० । तिण्णिवेद० अवत्त० खेत्तं । सम्म०-सम्मामि० तिरिक्खोपं । गवरि वेदा जाणिदव्वा ।
४०४. पंचिंदियतिरिक्ख-अपज०-मणुसअपज. सव्वपय० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । मणुसतिये पंचिंदियतिरिक्खतियभंगो। णवरि सम्म० खेत्तं । मणुसिणी० इथिवेद० अवत्त० खेत्तं ।
६४०५. देवेसु सव्वपयडी० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो अट्ट व चोइस० । पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए । सातवीं पृथिवीमें मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका भंग क्षेत्रके समान है। तथा पहली पृथिवी में सब प्रकृतियोंके सब पदोंके उदीरकोंका गंग क्षेत्रके समान हैं।
४०२. तिर्यश्चोंमें ओघके समान भंग है इतनी विशेषता है कि मिथ्यास्वके अवव्य पदके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और प्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम सात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वके तीन पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यात भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंके कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका भंग क्षेत्रके समान है। सम्यग्मिध्यात्वके सब पदोंके उदीरकोंका भंग क्षेत्रके समान है। खीवेद और पुरुषवेदके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
४०३. पश्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके उदीरकोंने त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम सात भागप्रमाण क्षेत्रका अतीतकालमें स्पर्शन किमा है। तीन वेदोंके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका भंग क्षेत्रके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वके सब पदोंके उदीरकोंका भंग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है । इतनी विशेषता है कि अपने-अपने वेद जान लेने चाहिए।
४०४. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें माग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यत्रिकमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके सब पदोंके उदीरकोंका भंग क्षेत्रके समान है । मनुष्यिनियोंमें खीवेदके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका भंग क्षेत्रके समान है। . ४०५. देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन