Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपबडिअणुभागउदीरणाए भुजगारे कालो
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वरि सम्म० सम्म ०- सम्मामि० सव्यपय लोग० असंखे० भागो अट्ठ चोदस० । पूर्व सोहम्मीसाण० ।
१४०६. भवण ० - पाणवे ० - जोदिसि० सव्वपय० सव्वपद० लोग० असंखे ०भागो अड्डा वा अट्ठ णव चोइस० । णवरि सम्म० - सम्मामि० सव्ववद० लोग० असंले० भागो अड्डा वा अड्ड चोइस० ।
१४०७. सणक्कुमारादि सहस्सारा सि सव्वपय० सव्वपदा० लोग ० असंखे०भागो अड्ड चोइस० । आणदादि अच्चुदा ति सव्त्रपय० सव्यपद० लोग० असंखे ० भागो छ बोस • । उवरि खेतं । एवं जाव० ।
१४०८. कालणुगमेण दुबिड़ो णिसो- ओषेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०पुंस० अवस० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । सेसपदा० सव्वद्धा । सम्म० - इत्थिषे० - पुरिसवे० भुज० - अप्प ० सव्वद्धा । सेसपदा० जह० एगस, उक्क० . आवलि० असंखे ० भागो । एवं सम्मामि० । णवरि भुज ० - अप्प० जह० एस ०, उप० पलिदो ० असंखे ० भागो । सोलसक० - छण्णोक० सव्वपदा० सव्वद्धा ।
किया है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यमिध्यात्वके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और प्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्प में जानना चाहिए ।
$ ४०६. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन और कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
$ ४०७. सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आनत कल्पसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आगेके देवोंमें स्पर्शन क्षेत्रके समान है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
$ ४०८. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओध और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । शेष पदोंके उदीरकोंका काल सर्वदा है । सम्यक्त्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका काल सर्वदा है । • शेष पदोंके उदीरकोंका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार सम्यग्मिध्यात्वके सब पदोंके उदीरकोंका काल जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका जघन्यकाल एक समय है और