Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए बड्डीए पोसणाणुगमो एवं तिरिक्खा० । सेसगदीसु सव्वपयडी० सव्वपदा० लोग० असंखे भागे । एवं जाव०।
४६४. पोसणाणुगमेण दुविहो णिहेसो-ओघेण आदेसेण य । ओषेण मिच्छ०-णस० सव्वपद० सव्वलोगो। गवरि मिच्छ० अवत्त० लोग० असंखे०मागो अट्ठ बारह चोद्दस० दे० । गQस० अवत्त० लोग० असंखे भागो सव्वलोगो वा । सम्म०- सम्मामि० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो अट्ठ चोदस० देरणा। सोलसक०छण्णोक० सव्वपद० सव्वलोगो । इत्थिवेद-पुरिसवेद० सव्वपद० लोग० असंखे०मागो अट्ट चोइस० सव्वलोगो वा । णवरि अवत्त० णवंस०मंगो। ___ ४६५. आदेसेण रहय० मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो छ चोद्दस० । णवरि मिच्छ० अवत्त० लोग० असंखेमागो पंच चोदसः । सम्म० सम्मामि० खेत्तं । एवं विदियादि सत्तमा ति । वरि सगपोसणं । णवरि उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
६४६४. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके सब पद-अनुभागके उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा नपुंसकवेदके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सब पद-अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सोलह कषाय और छह नोकषायोंके सब पद-अनुभागके उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके सब. पद-अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग,
सनालोके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका भंग नपुंसकवेदके समान है।
विशेषार्थ-स्वामित्व और भुजगार अनुयोगद्वारमें प्रतिपादित स्पर्शनके स्पष्टीकरणको भ्यानमें रख कर प्रकृतमें खुलासा कर लेना चाहिए। विशेष वक्तव्य न होनेसे यहाँ अलगसे स्पष्टीकरण नहीं किया। आगे भी इसी न्यायसे स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए।
४६५. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके सब पद-उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व के अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह मांगोंमेंसे कुछ कम पाँच भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें जानना चाहिए।