Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए वड्डीए णाणाजीवेहिं कालाणुगमो १७३
$ ४६९. देवेसु सम्म०-सम्मामि० ओघं । सेसपयडीणं सव्वपद० लोग० असंखे भागो अढ णव चोदस० देसूणा । एवं सोहम्मीसाण । भवण- वाणवें०जोदिसि० सम्म०-सम्मामि० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो अट्ठा वा अट्ठ चोद्दस० । सेसपयडी० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो अद्भुट्ठा वा अट्ठ णव चोदस० । सणकुमारादि जाव सहस्सार ति सव्वपय० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो अट्ठ चोद० । आणदादि जाव अचुदा ति सव्वपय० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो छ चोइस० । उवरि खेत्तभंगो । एवं जाव० ।
४७०. कालाणु० दुविहो •णिद्देसो-ओघेण आदेसे० य । ओघेण मिच्छ०सोलसक०-सत्तणोक० सव्वपदा० सम्वद्धा । णवरि मिच्छ०-णवुस० अवत्त० जह. एयस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो । सम्म०-इत्थिवे०-पुरिसवे० अणंतगुणवड्डिहाणी० सव्वद्धा । सेसपदा० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असं०भागो । सम्मामि०
$ ४६९. देवोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके सब पद-अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा सनालोके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पशन किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पमें जानना चाहिए । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सब पद-अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन भाग और कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंके सब पद-अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन भाग, कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पद-अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालोके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आनत कल्पसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पद-अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आगेके देवोंमें क्षेत्रके समान भंग है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा वक जानना चाहिए।
६ ४७०. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व सोलह कषाय और सात नोकषायोंके सब पद-अनुभागके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सम्यक्त्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरकोंका काल
वेदा है। शेष पद-अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यग्मिथ्यात्वका भंग इसी प्रकार है। इतनी विशेषता है कि अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है