Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ ___४४८. तिरिक्खाणमोघं । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिये । णवरि पजे० इत्थिवेदो पत्थि । जोणिणीसु पुरिस०-णवंस० पत्थि । इथिवे० अवत्त० णत्थि । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज०-मणुसअपज्ज० मिच्छ-णस० ओघं । णवरि अवत्त० पत्थि । सोलसक०-छण्णोक० ओघ ।
४४९. मणुसतिये ओघं । णवरि पन्ज० इथिवेदो णत्थि। मणुसिणी० पुरिसवेद-णवूस० णत्थि । देवेसु ओघं । णवरि णस० णत्थि । इत्थिवे०-पुरिसवे० अवत्त० णत्थि । एवं भवणादि सोहम्मा त्ति । एवं सणक्कुमारादि गवगेवजा त्ति । गवरि इत्थिवेदो णत्थि । अणुदिसादि सव्वट्ठा ति सम्म०-बारसक०-सत्तणोक० आणदभंगो। एवं जाव० ।
४५०. सामित्ताणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-अणंताणु०४ सव्वपदा कस्स ? अण्णद० मिच्छाइद्विस्स । सम्म० सव्वपदा कस्स ? अण्णद० सम्माइट्ठिस्स । सम्मामि० सव्वपदा कस्स ? अण्णद० सम्मामिच्छाइहिस्स । बारसक०-णवणोक० सव्वपदा कस्स ? अण्णद० सम्माइटिस्स मिच्छाइट्टि ।
$४४८. तिर्यश्चोंमें ओघके समान भंग है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है तथा योनिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है । तथा योनिनियों में स्त्रीवेदका अवक्तव्य पद नहीं है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व और नपुंसकवेदका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि यहाँ इनका अवक्तव्य पद नहीं है । सोलह कषाय और छह नोकषायोंका भंग ओघके समान है।
$ ४४९. मनुष्यत्रिकमें ओघके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है तथा मनुष्यिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है । देवोंमें ओघके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसकवेद नहीं है । तथा इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदका अवक्तव्य पद नहीं है। इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर सौधर्म-ऐशान कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए । इसी प्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर नौ प्रैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकषायोंका भंग आनत कल्पके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
४५०. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होते हैं । सम्यक्त्वके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होते हैं। सम्यग्मिध्यात्वके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतर सम्यग्मिथ्यादृष्टिके होते हैं। बारह कषाय और नौ नोकषायोंके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टिके होते हैं।
१. आ प्रतौ अपज० इति पाठः ।