Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
अरदि-सोग-भय-दुगुंछा० मणुसभंगो । हस्स - रदि० ओघं । एवं भवणादि जाव णववजाति । वरि हस्स-रदि० मिच्छत्तेण सह भाणिदव्वं । सणक्कुमारादि उवरिमित्थिaat for | आणदादि जाव णवगेवजा त्ति तप्पाओग्गसंकिलेस - विसोही भाणिदव्वा ।
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४३१. अणुदिसादि सव्वट्टा त्ति सम्म० - बारसक० - सत्तणोक० उक्क० वड्डी कस्स ? अण्णद० वेदगसम्माइट्ठि ० जो तप्पा ओग्गउक्कस्साणुभाग संतकम्मिगो तप्पा ओग्गउक्कस्ससंकिलेसं गदो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स १ अण्णद० तप्पाओग्गउक्कस्साणुभागमुदीरेंतो तप्पा ओग्गविसोहीए पदिदो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठा० । एवं जाव० ।
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$ ४३२. जह० पदं । दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० अता ०४ जह० बड्डी कस्स ? अण्णद० अधापवत्तमिच्छाइट्ठिस्स जो तप्पाओग्गसंकिलट्ठो अनंतभागेण वड्ढिदो तस्स जह० वड्डी । तस्सेव से काले जह० अवट्ठा० । जह० हाणी कस्स ? अण्णद० चरिमसमयमिच्छाइट्ठिस्स से काले संजमं पडिवजिहिदि ति तस्स जह० हाणी |
६ ४३३. सम्म० जह० वड्डी कस्स ? अण्णद० अधापवत्तसम्माइट्ठिस्स जो अनंतभागेण वड्ढिदो तस्स जह० वड्डी । तस्सेव से काले जह० अवट्ठा० । जह० हाणी
भंग ओघ के समान है । इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर नौ मैवेयक तकके देवों में जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि हास्य और रतिको मिध्यात्वके साथ कहलाना चाहिए । सनकुमार कल्पसे लेकर आगे स्त्रीवेद नहीं है। आनत कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें तत्प्रायोग्य संक्लेश और विशुद्धि कहलानी चाहिए ।
$ ४३१. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकपायोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभाग सत्कर्मवाला जो अन्यतर वेदक सम्यग्दृष्टि जीव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ उसके उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जो अन्यतर जीव तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त हुआ उसके उनकी उत्कृष्ट हा है | तथा उसीके तदनन्तर समयमें उनका उत्कृष्ट अवस्थान होता है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
.९ ४३२. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश | ओघ मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला जीव अनन्तभागवृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त हुआ है ऐसे अधःप्रवृत्त मिथ्यादृष्टिक उनकी जघन्य वृद्धि होती है। तथा उसीके तदनन्तर समयमें उनका जघन्य अवस्थान होता है | धन्य हानि किसके होती है ? जो तदनन्तर समयमें संयमको प्राप्त होगा ऐसे अन्तिम समयवर्ती मिध्यादृष्टिके उनकी जघन्य हानि होती है ।
$ ४३३. सम्यक्त्वकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो अनन्तभागवृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त हुआ है ऐसे अधःप्रवृत्त सम्यग्दृष्टिके उसकी जघन्य वृद्धि होती है । तथा उसीके तदनन्तर