Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए भुजगारे पोसणाणुगमो
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चोहस० । एवं णवंस० । णवरि अवत्त० लोग० असंखे ० भागो सव्वलोगो वा । सम्म०सम्मामि० सव्वपदा० लोग० असंखे० भागो अटु चोदस० । सोलसक० - छण्णोक० सव्वपदा० सव्वलोगो । इत्थवेद - पुरिसवेद ० - तिष्णिपदा० लोग० असंखे० भागो अट्ठ चोद्दस • सव्वलोगो वा । अवत्त० लोग० असंखेभागो सव्वलोगो वा ।
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४०१. आदेसेण णेरइय० सव्ववय० सव्वपदा० लोग असंखे ० भागो छ चोदस० । णवरि मिच्छ० अवत्त० लोग० असंखे ० भागो पंच चोद्दस ० सम्म०
इसके अवक्तव्य पदके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सबपदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सोलहकषाय और छह नोकषायोंके सब पदोंके उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके तीन पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातव भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग तथा सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ – जो सम्यग्दृष्टि जीव मिथ्यात्वको प्राप्त कर प्रथम समयमें उसका अवक्तव्य पद करते हैं उनका विहारवत्स्वस्थान आदि की अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागों में से 'कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका तथा मारणान्तिक समुद्धात और उपपाद पदकी अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागों में से नीचे पाँच और ऊपर सात इस प्रकार कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है, इसलिए यहाँ मिध्यात्वके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका उक्त क्षेत्रप्रमाण भी स्पर्शन कहा है। नपुंसकवेदका अवक्तव्यपद अन्य वेदसे आकर अपने जन्मके प्रथम समय में एकेन्द्रिय जीव भी करते हैं और वे अतीत कालकी अपेक्षा सर्व लोकमें पाये जाते हैं, इसलिए इसके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका सर्व लोकप्रमाण भी स्पर्शन कहा है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की उदीरणा यथायोग्य चारों गतियोंमें संभव है, किन्तु उन सबका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही बनता है । मात्र विहारवत्स्वस्थान आदिकी अपेक्षा अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण भी बन जाता है, इसलिए इस अपेक्षासे उक्त प्रकृतियोंके सब पदोंके उदीरकोंका स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण कहा है। मुख्यतासे जो एकेन्द्रिय जीव मर कर स्त्रीवेदी और पुरुषवेदियों में उत्पन्न होते हैं उनका अतीत स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण बन जानेसे इनके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका सर्व लोकप्रमाण भी स्पर्शन कहा है। शेप कथन सुगम होनेसे यहाँ उसका स्पष्टीकरण नहीं किया है। इसी न्यायसे गतिमार्गणाके भेद-प्रभेदों में अपने-अपने स्पर्शनका स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए ।
४०१. आदेश से नारकियों में सब प्रकृतियोंके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि मिध्यात्वके अवक्तव्य पदके उदीरकोंने लोंकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भांगोंमेंसे कुछ कम पाँच भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सब पदोंके उदीरकोंका भंग क्षेत्रके समान है । इसी प्रकार दूसरी