Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णियासो
$ ३२९. कुदो १ जहाक्खादसंजमविरोहिसंजलणाणुभागं पेक्खियूण वयोवसमियसंजमं पडिबंधिपच्चक्खाणकसायस्साणुभागस्साणंतगुणहीणत्तसिद्धीए णाइयत्तादो । * अपच्चक्खाणावरणीयाणमुक्कस्साणुभागमुदीरणा अण्णदरा अनंतगुणहीणा ।
$ ३३०. किं कारणं ९ सयलसंजमघादिपच्चक्खाणकसायाणुभागादो देससंजमविरोहि-अपच्चक्खाणाणुभागस्साणंतगुणहीणसरूवेणावट्ठाणदंसणादो ।
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* णवुंसयवेदस्स उक्कस्साणुभागुदीरणा अणंतगुणहीणा । १३३१. कुदो १ कसायाणुभागादो णोकसायाणुभागस्साणंतगुणहीण तसिद्धीए णायादो ।
* अरदीए उकस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा ।
$ ३३२. कुदो १ अरदिमेत्तकारणत्तादो। णवु सयवेदाणुभागो पुण इट्टवागग्गिसमाणोति ।
* सोगस्स उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा ।
$ ३३३. कुदो १ अरदिपु रंगमत्तादो ।
* भए उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा ।
$ ३२९. क्योंकि यथाख्यातसंयमके विरोधी संज्वलनोंके अनुभागको देखते हुए क्षायोपशमिक संयमका प्रतिबन्ध करनेवाले प्रत्याख्यान कषायका अनुभाग अनन्तगुणा हीन सिद्ध होता है यह न्याय्य है ।
* उससे अप्रत्याख्यानावरणीय कर्मोंकी अन्यतर उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।
$ ३३०. क्योंकि सकल संयमका घात करनेवाले प्रत्याख्यान कषायके अनुभागसे देशसंयमके विरोधी अप्रत्याख्यान कषायके अनुभागका अनन्तगुणे होनरूपसे अवस्थान देखा जाता है।
* उससे नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।
३३१. क्योंकि कषायोंके अनुभागसे नोकषायोंका अनुभाग अनन्तगुणा होन सिद्ध होता है यह न्याय्य है ।
* उससे अरतिकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।
$ ३३२. क्योंकि वह अरतिमात्रकी कारण है, परन्तु नपुंसकवेदका अनुभाग इष्टपाककी अग्निके समान है ।
* उससे शोककी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।
$ ३३३. क्योंकि वह अरतिपूर्वक होती है ।
* उससे भयकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।