Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
* अणंताणुबंधीणमण्णदरा उक्कस्साणुभागुदीरणा तुल्ला अनंतगुणहीणा ।
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$ ३२७. कुदो १ मिच्छत्तुकस्साणुभागादो एदेसिमुकस्साणुभागस्स अनंतगुणहीणसरूवेणावद्वाणदंसणादो । एत्थ अनंताणुबंधिमाणादीण मणुभागुदीरणा सत्थाणे समाजा त्ति जं भणिदं तण्ण घडदे । किं कारणं ? विसेसाहिय सरूवेणेदे सिमणुभागसंतकम्मस्सावद्वाणदंसणादो ? ण एस दोसो, विसेसा हियसंतकम्मादो विसेसहीणसंतकम्मादो च समाणपरिणामणिबंधणा उदीरणा सरिसी होदि ति अब्भ्रुवगमादो । एसो अत्थो उवरि संजणादिकसासु वि जोजेयव्वो ।
* संजलपाणमण्णदरा उक्कस्साणुभागुदीरणा अयंतगुणहीणा ।
९३२८. कुदो १ दंसण - चारितपडिबंधिअनंताणुबंधीण मुकस्साणुभागुदीरणादो चारित्तमेतपडिबंधीणं संजलणाण मुक्कस्साणुभागुदीरणाए अनंतगुणहीणतं पडि विरोहाभावादो ।
* पच्चक्खाणावरणीयाणमुक्कस्साणुभागुदीरणा
गुणहीणा ।
अण्णदरा अणंत
* उससे अनन्तानुबन्धियोंकी अन्यतर उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा परस्पर समान होकर अनन्तगुणी हीन है ।
$ ३२७. क्योंकि मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागसे इनका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणे हीनरूपसे अवस्थित देखा जाता है ।
शंका —यहाँ पर अनन्तानुबन्धी मान आदिकी अनुभाग उंदीरणा स्वस्थानमें समान ऐसा जो कहा है वह घटित नहीं होता, क्योंकि इनके अनुभाग सत्कर्मका विशेष अधिकरूपसे अवस्थान देखा जाता है ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि विशेष अधिक सत्कर्मसे और विशेष हीन सत्कर्मसे समान परिणामनिमित्तक उदीरणा सदृश होती है ऐसा स्वीकार किया है। यह अर्थ ऊपर संज्वलन कषाय आदिके विषयमें भी लगा लेना चाहिए।
* उससे संज्वलनोंकी अन्यतर उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।
$ ३२८. क्योंकि दर्शन और चारित्रका प्रतिबन्ध करनेवाली अनन्तानुबन्धियोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणासे मात्र चारित्रका प्रतिबन्ध करनेवाले संज्वलनोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणे हीन होनेमें कोई विरोध नहीं है ।
* उससे प्रत्याख्यानावरणीय कर्मोंकी अन्यतर उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है ।