Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ ___$ ३१९. इथिवे. जह० उदी सम्म० सिया० अणंतगुणब्भ० । वारसक०छण्णोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवं पुरिस० ।
$ ३२०. हस्सस्स जह० अणुभा० उदी० सम्म० इत्थिवेदभंगो। बारसक०इत्थिवेद-पुरिसवेद-भय-दुगुछ० सिया तं तु छट्ठाणप० । रदि० णिय० तं तु छट्ठाणप० । एवं रदीए । एवमरदि-सोगाणं ।
$३२१. भय० जह० उदी० बारसक-सत्तणोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । सम्म० इत्थिवेदभंगो । एवं दुगुछ० । एवं सोहम्मीसाण० । सणकमारादि जाव णवगेवजा ति एवं चेव । णवरि इत्थिवेदो णत्थि । पुरिसवेदो धुवो कायव्यो ।
६ ३२२. भवण-वाण-०-जोदिसि० देवोघं । णवरि बारसक०-अट्ठणोक०
$ ३१९. स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जीव सम्यक्त्वका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यको अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागका उदीरक है । बारह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीक है और कदाचित अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है । इसी प्रकार पुरुषवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ___$३२०. हास्यके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाले जीवके सम्यक्त्वका भंग स्त्रीवेदके समान है । बारह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है। रतिका नियमसे उदीरक है जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है । इसी प्रकार रतिको मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार अरति और शोककी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
३२१. भयके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला बारह कषाय और सात नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है। सम्यक्त्वका भंग स्त्रीवेदके समान है। इसी प्रकार जुगुप्साकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पमें जानना चाहिए । सनत्कुमार कल्पसे लेकर नौ वेयक तक इसी प्रकार जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है। इनमें पुरुषवेद ध्रुव करना चाहिए।
३२२. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सामान्य देवोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और छह नोकषायोंके जघन्य अनुभागको उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्वका कदाचित् उदोरक है और कदाचित् अनुदोरक है। यदि उदीरक है तो