Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णियासो
१२१ $ ३१५. देवेसु मिच्छ० जह० अणुभा० उदी० सोलसक०-अट्ठणोक० सिया अणंतगुणब्भ० । एवं सम्मामि० । णवरि अणंताणु०४ पत्थि । ।
३१६. सम्म० जह० अणुभा० उदी० बारसक०-छण्णोक० सिया अणंतगुणब्भ० । एवं पुरिसवे० । णवरि णिय० उदी० अणंतगुणब्भ० ।
३१७. अणंताणु०कोध० जह० अणुभा० उदी० तिण्हं कोधाणं णिय० अणंतगुणब्भ० । अट्ठणोक० सिया अणंतगुणब्भ० । एवं तिण्हं कसायाणं ।
६३१८. अपच्चक्खाणकोह. जह० उदी० सम्म० सियो अणंतगुणब्भ० । दोण्हं कोधाणं णिय० तं तु छट्ठाणप० । अट्ठणोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवमेकारसक० ।
$३१५. देवोंमें मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जीव सोलह कषाय और आठ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागको अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार सम्यमिथ्यात्वको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उदीरणा नहीं होती।
$ ३१६. सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जीव बारह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार पुरुषवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि वह नियमसे उदीरक है जो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागका उदीरक है।
६३१७. अनन्तानुबन्धी क्रोधके जघन्य अनुभागका उदीरक जीव तीन क्रोधोंका नियमसे उदीरक है । जो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। आठ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार तीन कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
३१८. अप्रत्याख्यानावरण क्रोधके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जीव सम्यकक्त्वका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदोरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागको उदीरणा करता है। दो क्रोधोंका नियमसे उदीरक है जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है। आठ नोकषायोंका कदाचित उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है । इसी प्रकार ग्यारह कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
१. ताःप्रतौ उदी० सिया इति पाठः। १६