Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०६२]
उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णियासो * सम्मत्ते उक्कस्साणुभागुदीरणा अणंतगुणहीणा । $३४१. कुदो ? देसघादिविट्ठाणियसरूवत्तादो ।
एवमोघेण उक्कस्सप्पाबहुअं समत्तं । ३४२. संपहि आदेसेण सव्वगइमग्गणासु अप्पप्पणो उदीरिजमाणपयडीणमेवं चेव णेदव्वं, विसेसाभावादो । एवं जाव अणाहारि त्ति । .
* जहरणाणुभागुदीरणा।
३४३. एत्तो जहण्णाणुभागुदीरणा अप्पाबहुअविसेसिदा कायव्वा त्ति पयदसंभालणसुत्तमेदं । तदो जहण्णए पयदं । दुविहो णिदेसो-ओघादेसभेदेण । तत्योधपरूवणमुत्तरसुत्तमा ह
* सव्वमंदाणुभागा लोभसंजलणस्स जहरणाणुभागुदीरणा ।
३४४. कुदो ? सुहुमकिट्टीए अंतोमुहुत्तमणुसमयोवट्टणाए सुटू जहण्णभावं पत्ताए पडिलद्धजहण्णभावत्तादो ।
* मायासंजलणस्स जहणणाणुभागउदीरणा अणंतगुणा ।
३४५. कुदो ? बादरकिट्टिसरूवेण चरिमसमयमायावेदगम्मि पडिलद्धजहण्णभाववादो।
* उससे सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । $ ३४१. क्योंकि यह देशघाति द्विस्थानीयस्वरूप है।
इस प्रकार ओघसे उत्कृष्ट अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। $३४२ अब आदेशसे सब गति मार्गणाओंमें अपनी-अपनी उदीयमाण प्रकृतियोंका अल्पबहुत्व इसी प्रकार जानना चाहिए, क्योंकि ओघप्ररूपणासे इसमें कोई विशेषता नहीं है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
* जघन्य अनुभाग उदीरणाका प्रकरण है।
$ ३४३. आगे अल्पबहुत्वसे विशेषित जघन्य अनुभाग उदीरणाका कथन करना चाहिए इस प्रकार प्रकृतकी सम्हाल करनेवाला यह सूत्र है। इसलिए जघन्यका प्रकरण है । ओघ और आदेशके भेदसे निर्देश दो प्रकारका है। उनमेंसे ओघका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* लोभसंज्वलनकी जघन्य अनुभाग उदीरणा सबसे स्तोक है।
$ ३४४. क्योंकि अन्तर्मुहूर्तकाल तक प्रति समय अपवर्तनाके द्वारा अच्छी तरह जघन्यभावको प्राप्त हुई सूक्ष्मकृष्टिका जघन्यपना पाया जाता है।
* उससे मायासंज्वलनकी जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है।
$३४५. क्योंकि जो जीप (क्षपकश्रणिमें ) माया कषायका वेदन कर रहा है उसके अन्तिम सययमें बादरकृष्टिरूपसे जघन्यपना पाया जाता है ।