Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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१२० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो७ ३११. गवुस० जह० उदी० मिच्छ० णिय० तं तु छट्ठाण । सोलसक०छण्णोक० सिया० तं तु छट्ठाणप० ।
$ ३१२. हस्सस्स जह० अणुभा० उदी० मिच्छ०-णवूस०-रदि० णिय० तं तु छट्ठाणप० । सोलसक०-भय-दुगुंछ० सिया० तं तु छट्ठाणप० । एवं रदिए । एवमरदि-सोग० । ___$३१३. भय० जह० अणुभा० उदी० मिच्छ०-णस० णि तं तु छट्ठाणप० । सोलसक०-पंचणोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवं दुगुंछाए ।
F३१४. मणुसतिए ओघं । णवरि पञ्ज० इत्थिवेदो णत्थि । मणुसिणीसु इत्थिवेदो धुवो कायव्वो।
$३११. नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागका उदीरक जीव मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदोरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है । सोलह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है।
३१२. हास्यके जघन्य अनुभागका उदीरक जीव मिथ्यात्व, नपुसकवेद और रतिका नियमसे उदीरक है। जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है। सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है. तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है। इसी प्रकार रतिकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार अरति और शोककी मुख्यतासे सन्निनर्ष जानना चाहिए ।
६३१३. भयके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जीव मिथ्यात्व और नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है । जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है । सोलह कषाय और पाँच नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है। इसी प्रकार जुगुप्साकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
$३१४. मनुष्यत्रिकमें ओघके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि मनुष्य पर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है तथा मनुष्यिनियोंमें स्त्रीवेद ध्रुव करना चाहिए ।