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________________ १२६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ ९ ३३४. कुदो १ सोगोदयस्सेव भयोदयस्स बहुकालपडिबद्धदुक्खुप्पायणसत्तीए अभावाद । * दुगुंछाए उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा । $ ३३५. कुदो १ भयोदणेव दुगुंछोदएण मरणाणुवलंभादो । * इत्थिवेदस्स उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीपा $ ३३६. कुदो ? पुव्विल्लं पेक्खिऊणेदस्स पसत्थभावोवलंभादो । * पुरिसवेदस्स उक्कस्सापुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा । $ ३३७. कुदो ? इत्थवेदो कारिसग्गिसमाणो । पुरिसवेदो पुण पलालग्गिसमाणो । तेणानंतगुणहीणो जादो । * रदीए उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा । $३३८. कुदो १ पुंवेदोदयस्सेव रदिकम्मोदयस्स संतावजणणसत्तीए अभावादो । * हस्से उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा । $ ३३९. कुदो १ रदिपुरंगमत्तादो । * सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्साणुभागुदीरणा अयंतगुणहीणा । ९ ३४०. कुदो १ विट्ठाणियत्तादो । $ ३३४. क्योंकि जिस प्रकार शोकका उदय बहुत काल तक दुःखोत्पादनकी शक्तिसे युक्त है उस प्रकार भयके उदयमें बहुत कालसे प्रतिबद्ध दुःखके उत्पादनकी शक्तिका अभाव है। * उससे जुगुप्साकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । $ ३३५. क्योंकि भयके उदयके समान जुगुप्साके उदयसे मरण नहीं पाया जाता है। * उससे स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । $ ३३६. क्योंकि पूर्व के अनुभागको देखते हुए इसमें प्रशस्तभाव पाया जाता है। * उससे पुरुषवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । $ ३३७. क्योंकि स्त्रीवेद कंडेकी अग्निके समान है, परन्तु पुरुषवेद पलालकी अग्निके समान है। इसलिए यह उससे अनन्तगुणा हीन है । * उससे रतिकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । $ ३३८ क्योंकि पुरुषवेदके उदयके समान रतिकर्मके उदयमें सन्तापको उत्पन्न करनेकी शक्तिका अभाव है । * उससे हास्यकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । $ ३३९. क्योंकि यह रतिपूर्वक होती है । * उससे सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । ९ ३४०. क्योंकि यह द्विस्थानीयस्वरूप है ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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