Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णियासो
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पुधत्तं पलिदो ० संखे० भागो । बारसक० - सत्तणोक० जह० जह० एगस ०, उक्क० असंखे • लोगा । अजह० णत्थि अंतरं । एवं जाव० ।
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$ २५७. सण्णिासो दुविहो -- जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिद्देसोओघेण आदेसेण य । ओधेण मिच्छत्तस्स उक्क० अणुभागमुदीरें तो सोलसक० - णवणोक० सिया उदी० सिया अणुदी० । जदि उदी० उक्कस्सं वा अणुक्कस्सं वा । उक्कसादो अणुक्कसं छाणपदिदमुदीरेदि । सम्म० उक्कस्साणुभागमुदीरेंतो बारसक०णवणोक० सिया उदी० सिया अणुदी० । जदि उदोरगो निय० अणुक्क० अनंतगुणहीणं । एवं सम्मामि० ।
$ २५८. अनंताणु० को ० उक्क० उदी० मिच्छ० तिण्डं कोहाणं णिय० उदी०, उक्क० अणुक्क० । उक्कस्सादो अणुक्क० छट्टाणपदिदं । णवणोक० सिया० तं तु छाणपदिदं । एवं पण्णारसक० !
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$ २५९. इत्थिवेद० उक्क० अणुभागमुदीरे० ' मिच्छ० णिय ० तं तु छट्टाणपदिदं ।
और सर्वार्थसिद्धिमें पल्योपमके संख्यातवे भागप्रमाण है । बारह कषाय और सात नोकषायोंके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
$ २५७. सन्निकर्ष दो प्रकारका है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मिध्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टसे षट्स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला बारह कषाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो नियमसे अनन्त गुणहीन अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिको मुख्य कर सन्निकर्ष कहना चाहिए ।
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$ २५८. अनन्तानुबन्धी क्रोधके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्व और तीन क्रोधोंकी नियमसे उदीरणा करता है, जो उनके उत्कृष्टका उदीरक है या अनुत्कृष्टका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्टका उदीरक है तो उत्कृष्टसे छह स्थान पतित अनुत्कृष्टकी उदीरणा करता है। नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो उत्कृष्टका उदीरक है या अनुत्कृष्टका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्टका उदीरक है तो उत्कृष्टसे छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार पन्द्रह कषायोंको मुख्यकर सन्निकर्षं कहना चाहिए ।
$ २५९. स्त्रीवेदके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है जो उत्कृष्टका उदीरक है या अनुत्कृष्टका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्टका उदीरक है तो उत्कृष्टसे छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । सोलह कषायोंका कदाचित् उदीरक
१. ता०प्रतौ उक्क अणुक्कमुदीरे० इति पाठः ।
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