Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वैदगो७ दोण्हं कोधाणं णस० णिय० तं तु छट्ठाणप० । छण्णोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवमेक्कारसक० ।
२९८. णवूस. जह० उदी० सम्म० सिया अणंतगुणब्भ० । बारसक०छण्णोक० सिया तं तु छट्ठाणप० ।।
$ २९९. हस्सस्स जह० उदी० सम्म० णसभंगो। पारसक०-भय-दुगुंछ० सिया तं तु छट्ठाणप० । णवंस०-रदि० णिय. तं तु छट्ठाणप० । एवं रदीए । एवमरदि-सोगाणं।
$३००. भय० जह० उदी० सम्म०-णवूस० हस्सभंगो। बारसक०-पंचणोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवं दुगुंछाए । एवं पढमाए । विदियादि सत्तमा त्ति एवं अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। दो क्रोध और नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है । जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार ग्यारह कषायोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
२९८. नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्वका कदाचित उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक 'अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। बारह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है।
२९९. हास्यके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवालेके सम्यक्त्वका भंग नपुंसकवेद के जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवालेके समान है । वह बारह कषाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागको उदीरणा करता है । नपुंसकवेद और रतिका नियमसे उदीरक है । जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार रतिको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार अरति और शोकको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
३००. भयके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवालेके सम्यक्त्व और नपुंसकवेदका भंग हास्यके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवालेके समान है । वह बारह कषाय और पाँच नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्यकी अनुभागका