Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए एवजीवेण अंतरं
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* उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा ।
$ १८९. कुदो ? सणिपंचिदिएसुक्कस्ससंकिलेसेणुकस्साणुभागुदीरणाएं आदि कादूतरिय इंदिए पविसिय तदुक्कस्सट्ठिदिमेत्तमुक्कस्संतरमणुपालिय पुणो वि पडिणियत्तिय तसेसु आगंतूण पडिवण्णतब्भावम्मि तदुवलंभादो ।
* अणुक्कस्साणुभागुदीरगंतरं केवचिरं कालादो होदि ? $ १९०. सुगमं ।
* जहण्णेण एगसमओ ।
$ १९१. अणुक्कस्सादो उक्कस्सभावं गंतूणेगसमयमंतरिय पुणो वि तदणंतरसमये अणुक्कस्तभावेण परिणदम्मि तदुवलद्धीदो ।
* उक्कस्सेण वे छावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि ।
$ १९२. तं जहा – मिच्छत्ताणुवस्साणुभागुदीरेमाणो पढमसम्मत्ताहिमुहो होदूण मिच्छत्तपढमडिदीए आवलियमेत्तसेसाए अणुदीरगभावेणंतरिय तदो सम्मत्तमुप्पाइय सव्वुक्कस्समुवसमसम्मत्तकालं वोलाविय वेदगसम्मत्तं पडिवज्जिय पढमछावट्टिमंतोमुहुत्तमणुपालय तदवसाणे सम्मामिच्छत्तेणंतोमुहुत्त मंतरिदो पुणो वि वेदगसम्मत्तं पडिलंभेण विदियछावहिं परिभमिय तदवसाणे अंतोमुहुत्तमेत्तसेसे मिच्छत्तं गंतूण मिच्छा
* उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है ।
$ १८९. क्योंकि संज्ञी पञ्चेन्द्रियोंमें उत्कृष्ट संक्लेशवश उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणाका प्रारम्भ कर तथा उसे अन्तरितकर और एकेन्द्रियोंमें प्रवेश कर एकेन्द्रियकी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण काल तक उत्कृष्ट अन्तरका अनुपालनकर फिर भी प्रतिनिवृत्त होकर सोंमें आकर उत्कृष्ट संक्लेशपूर्वक उत्कृष्ट उदीरणाके प्राप्त होने पर उक्त अन्तरकाल प्राप्त होता है ।
* अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका अन्तरकाल कितना है ?
$ १९० यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य अन्तरकाल एक समय है ।
$ १९१. अनुत्कृष्टसे उत्कृष्टभावको प्राप्त होकर एक समयके लिए अन्तरित कर फिर भी तदनन्तर समय में अनुत्कृष्टभावसे परिणत होने पर उक्त अन्तरकाल प्राप्त होता है ।
* उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक दो छ्यासठ सागरोपम है ।
$ १९२. यथा — मिध्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जीव प्रथम सम्यक्त्वके अभिमुख होकर मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिमें आवलिमात्र शेष रहने पर अनुदीरकभावसे अन्तरकर तदनन्तर सम्यक्त्वको उत्पन्न कर सबसे उत्कृष्ट उपशमसम्यक्त्वके कालको बिताकर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त कर तथा अन्तर्मुहूर्तकम प्रथम छयासठसागर काल तक उसका पालन कर उसके अन्तमें सम्यग्मिथ्यात्वके द्वारा अन्तर्मुहूर्त काल तक वेदकसम्यक्त्वको अन्तरित कर फिर भी वेदकसम्यक्त्वकी प्राप्तिद्वारा द्वितीय छयासठ सागर काल तक परिभ्रमण कर १. आ० प्रतौ - णुक्कस्सादो भागुदीरणाए इति पाठः, ता०प्रतौ - गुक्कस्सादो इति पाठः ।
भागुदीरणांए