Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गांव ६२ ]
उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए एयजीवेण अंतरं
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जवरि पञ्जत्त० इत्थिवेदो णत्थि । जोणिणीसु पुरिसवेद - णवुंसयवेद० णत्थि । इत्थवेद० अजह० जह० एगस०, उक्क० वे समया । सम्म० जह० जह० एस ०, उक० पुव्वकोडिपुध० । अजह० जह० एग०, उक्क० सगट्टिदी० ।
जह०
एग०, जह० अजह० जह०
$ २१०. पंचिं० तिरिक्खअप ० - मणुसअप ० मिच्छ० - णवुंसय० जह० उक्क० अंतो० । अजह० जह० एग०, उक्क० वे समया । सोलसक० - छण्णोक ० एगस ०, उक्क अंतोमु० ।
$ २११. मणुसतिए मिच्छ० - अनंताणु ०४ - सम्म० - सम्मामि ० पंचिदियतिरिक्खभंगो । अडक० जह० जह० अंतोमु०, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० पुब्वकोडी देखूणा । चदुसंजल ० – छण्णोक० जह० णत्थि अंतरं । अजह० जह० उक्क० अंतोमु० । तिण्णिवेद० जह० णत्थि अंतरं । अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० पुव्वकोडिं धत्तं । णवरि पञ्ज० इत्थिबेदो णत्थि । मणुसिणीसु पुरिसवे० - णवंस ०
के अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है । सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है ।
विशेषार्थ — योनिनी तिर्यों में कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि जीव मरकर उत्पन्न नहीं होते, इसलिए उनमें सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण बन जानेसे वह उक्त कालप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है।
$ २१०. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्व अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिथ्यात्व और नपुंसक - वेदके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है । सोलह कषाय और छह नोकषायोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है।
$ २११. मनुष्यत्रिकमें मिध्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भंग पवेन्दिय तिर्योंके समान है । आठ कषायोंके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ क एक पूर्वकोटिप्रमाण है । चार संज्वलन और छह नोकषायोंके जघन्य अनुभागके उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। तीन वेदोंके जघन्य अनुभागके उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है तथा मनुष्यिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है । तथा स्त्रीवेदके अजघन्य अनुभागके उदीरकका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है ।