Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
$ २५०. आदेसेण सव्वणिरय - सव्वतिरिक्ख - सव्वमणुस - सव्वदेवा त्ति जाओ पडीओ उदीरिज्जति तासिमोघं । णवरि मणुसअपज्ज० सव्वपयडी० उक्क० अणुभागुदी अंतरं जह एस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० पलिदो ० असंखे ० भागो । एवं जाव० ।
$ २५१. जह० पयदं । दुविहो णिसो – ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०बारसक० - छण्णोक० जह० जह० एयस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अजह० णत्थि अंतरं । सम्मामि० जह० जह० एयस०, उक्क० असंखे० लोगा । अजह० जह० एस०, उक्क० पलिदो ० असंखे० भागो । सम्म० - लोभसंजल० जह० जह० एस ०, उक्क० छम्मासं । अजह ० णत्थि अंतरं । इत्थिवे ० - णवंस० जह० जह० एयस०, उक्क० वासपुधत्तं । अजह० णत्थि अंतरं । तिण्णिसंजल० - पुरिसवे० जह० जह० एगस०, उक्क० वासं सादिरेयं । अजह० णत्थि अंतरं । एवं मणुसतिये । णवरि वेदा जाणिव्वा । मणुसिणी० खवगपय० वासपुधत्तं ।
उसके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकालको ध्यान में रखकर सम्यग्मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है।
$ २५०. आदेशसे सब नारकी, सब तिर्यञ्च, सब मनुष्य और सब देवोंमें जिन प्रकृतियोंकी उदीरणा होती है उनका भंग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि मनुष्य अपर्यातकों में सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
$ २५१. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश | ओघसे मिथ्यात्व, बारह कषाय और छह नोकषायके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य अनुभाग के उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सम्यक्त्व और लोभ संज्वलनके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है । अजघन्य अनुभाग
उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व प्रमाण है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है। तीन संज्वलन और पुरुषवेदके जघन्य अनुभाग के उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक एक वर्ष है 1 अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना वेद जान लेना चाहिए । तथा मनुष्य नियोंमें क्षपक प्रकृतियोंके जंघन्य अनुभागके उदीरकोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है ।