Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
८३
गा० ६२ ]
उत्तरपय डिअणुभागउदीरणाए एयजीवेण अंतरं
जह०
अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । एवं सम्म० । णवरि जह० णत्थि अंतरं । बारसक० - चदुणोक० जह० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । अजह० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवं णवं स० । णवरि अजह० जह० एगस ०, उक्क० वे समया | हस्स - रदि० जह० अजह० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देणाणि । एवं सत्तमाए । णवरि सम्म हस्स - रदिभंगो । एवं पढमादि जाव छट्टिति । णवरि सगट्टिदी देसूणा । हस्स - रदि० अरदि - सोगभंगो । पढमाए सम्म० जह० णत्थि अंतरं । अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० सागरो० देसूणं । $ २०८. तिरिक्खेसु मिच्छ० - अणंताणु ०४ ओघं । णवरि अजह० जह० उक्क० तिणि पलिदो ० देसूणाणि । सम्म० - सम्मामि० ओघं । अपच्चक्खाण०४ जह० ओघं । अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० एयपुचकोडी देणा । अट्ठक० - छण्णोक०
अंतोमु०,
जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । इसी प्रकार सम्यक्त्वकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके जघन्य अनुभागके उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । बारह कषाय . और चार नोकषायों के जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है। इसी प्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है । हास्य और रतिके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि यहाँ सम्यक्त्वका भंग हास्य और रतिके समान है । इसी प्रकार पहलीसे लेकर छटी पृथिवी तक जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। यहाँ हास्य और रतिका भंग अरति और शोकके समान है। पहली पृथिवीमें सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक सागरोपम है ।
विशेषार्थ – मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीच तुष्ककी जघन्य अनुभाग उदीरणा प्रथम सम्यक्त्वके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध जीवके यथासमयमें होती है, यतः प्रथम सम्यक्त्वका जघन्य अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है जो अपने अपने स्वामित्वको जानकर ले आना चाहिए ।
$ २०८. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि इनके अजघन्य अनुभाग के उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्योपम है । सम्यक्त्व और सम्यमिध्यात्वका भंग ओघके समान है। अप्रत्याख्यानचतुष्कके जघन्य अनुभागके उदीरकका भंग ओघके समान है। अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट