Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२]
उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए खेत्तं मणुसपज०-मणुसिणी०-सव्वट्ठदेवा सव्वपय० जह० अजह० केत्ति० १ संखेजा । देवा सोहम्मीसाणादि अवराजिदा त्ति सम्म० ओघं । सेसपय० जह० अजह० के० ? असंखेजा । एवं जाव०। ___$ २२४. खेत्तं दुविहं-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं। दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० उक्क० अणुभागुदी० लोग० असंखे०भागे । अणुक्क० सव्वलोगे। सम्म०-सम्मामि०-इत्थिवेद-पुरिसवे० उक्क० अणुक्क० लोग० असंखे०भागे । एवं तिरिक्खा० । सेसगदीसु सव्वपय० उक्क० अणुक० लोग० असंखे०भागे । एवं जाव० ।
$ २२५. जह० पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०सोलसक०-सत्तणोक० जह० लोग० असंखे०भागे । अजह० सव्वलोगे । सम्म०सम्मामि०-इत्थिवेद-पुरिस० जह• अजह लोग० असंखे०भागे । एवं तिरिक्खा० । सेसगदीसु सव्वपय० जह० अजह० लोग० असंखे०भागे । एवं जाव० ।
२२६. पोसणं दुविहं-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-सोलसक० उक्क० अणुभागुदी० लोग० असंखे०भागो संख्यात हैं । मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। देव और सौधर्म-ऐशान कल्पके देवोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें सम्यक्त्वकाभंग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
६२२४. क्षेत्र दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका क्षेत्र सर्वलोकप्रमाण है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। शेष गतियोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
$ २२५. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दी प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय ओर सात नोकषायोंके जघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंका क्षेत्र सर्वलोकप्रमाण है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार तिर्यश्चोंमें जानना चाहिए। शेष गतियोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
२२६. स्पर्शन दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व और सोलह कषायोंके उत्कृष्ट