Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
९२
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
०
० उक०
अट्ठ तेरह चोद्दस • भागा वा देसूणा । अणुक्क० सव्वलोगो । सम्म० - ० - सम्मामि० अणुक० लोग० असंखे ० भागो अट्ठ चोहस० देसूणा । इत्थवेद - पुरिसवेद० उक्क० लोग० असंखे० भागो छ चोद्दस० । अणुक्क • लोग० असंखे ० भागो सव्वलोगो वा । णवुंस०अरदि-सोग-भय- दुगुंछ० उक्क० लोग० असंखे० भागो छ चोदस० देसूणा । अणुक ०. सव्वलोगो । हस्स - रदि० उक्क० अणुभागुदी० लोग० असंखे० भागो अट्ठ चोइस •• देणा । अणुक्क० सव्वलोगो ।
अनुभाग उदोकोंने लोकके असंख्यातवें भाग, त्र्सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और कुछ कम तेरह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ – मिथ्यात्व और सोलह कषायोंके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा संज्ञी पन्द्रिय पर्याप्त मिथ्यादृष्टि उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले जीवोंके होती है। इनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग तथा मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम तेरह भागप्रमाण है । यहाँ ६ राजु नीचे और ७ राजु ऊपर इस प्रकार त्रसनालीका कुल कुछ कम तेरह राजु क्षेत्र लिया है। इसीलिए यहाँ उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका उक्त क्षेत्रप्रमाण स्पर्शन कहा है । इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन है। यह स्पष्ट ही है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा वेदक सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके अपने-अपने स्वामित्वके समय होती है । यतः इन जीवोंका इनकी उदीरणाके समय वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण ही बनता स्पर्शन उक्त क्षेत्रप्रमाण कहा है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंके स्वामित्वको देखते हुए उनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण बननेसे यह उक्त क्षेत्रप्रमाण कहा है । इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सर्वलोकप्रमाण है यह स्पष्ट ही है । नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा के उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक सर्वोत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले सातवीं पृथिवीके
अतः यह