Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
८८
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
दुविहो णिसो - ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० - सोलसक० - सम्म ०- - णवणोक ० उक० अणुभागुदीरणाए सिया सव्वे अणुदीरगा, सिया अणुदीरगा च उदीरगो च, सिया अणुदीरगा च उदीरगा च । एवमणुक० । णवरि उदीरगा पुव्वं वत्तव्वं ' । सम्मामि० उक्क० अणुक्क० अणुभागुदी ० अट्ठ भंगा। सव्वणिरय - सव्वतिरिक्ख - मणुसतियसव्वदेवात्ति जाओ पयडीओ उदीरिजंति तासिमोघं । मणुस अपजः सव्वपयडी० उक्क० अणुक० अट्ठ भंगा । एवं जावं । एवं जहण्णयं पि णेदव्वं ।
$ २१६. भागाभागाणु० दुविहो - – जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि०ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० - सोलसक० - सत्तणोक० उक्क० सव्वजी ० केव० -१ अभागो । अणुक्क० अणंता भागा। सम्म० - सम्मामि ० - इत्थि वे ० - पुरिसवे० उक्क० सवजी ० के ० १ असंखे ० भागो । अणुक्क० असंखेजा भागा । एवं तिरिक्खा ० ।
$ २१७. सव्वणिरय ० - सव्वपंचिदियतिरिक्ख - मणुसअपज्ज० – देवा जाव अवराजिदा ति सव्वपय० उक्क० अणुभागुदी ० असंखे ० भागो । अणुक्क० असंखे ० भागा ।
उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघ से मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सम्यक्त्व और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणाके कदाचित् सब जीव अनुदीरक हैं, कदाचित् नाना जीव अनुदीरक हैं और एक जीव उदीरक है, कदाचित् नाना जीव अनुदीरक हैं और नाना जीव उदीरक हैं । इसी प्रकार अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणाकी अपेक्षा कहना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पहले उदीरक हैं ऐसा कहना चाहिए । सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंके आठ भंग हैं । सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्यत्रिक और सब देव जिन प्रकृतियोंकी उदीरणा करते हैं उनका भंग ओघके समान है । मनुष्य अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के उदीरकोंके आठ भंग हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इसी प्रकार जघन्यको भी जानना चाहिए ।
$ २१६, भागाभागानुगम दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायों के उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव अनन्त बहुभागप्रमाण हैं । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव सव जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । इसी प्रकार तिर्यों में जानना चाहिए ।
$ २१७. सब नारकी, सब पचेन्द्रिय तिर्यन, मनुष्य अपर्याप्त और सामान्य देवोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव सब जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं ।
१. आ०प्रतौ पुव्वं व वत्तव्वं इति पाठः । ता०प्रतौ पुव्वं [व] वत्तव्वं इति पाठः ।