Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए एयजीवेण अंतरं
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ण स० । णवरि अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० वे समया । एवं सत्तमाए । एवं पढमाए जाव छट्ठिति । णवरि सगट्ठिदी देसूणा | हस्स -रदि० अरदि - सोगभंगो ।
$ १९९. तिरिक्खेसु ओघं । णवरि मिच्छ० - अनंताणु०४ अणुक्क० जह० एयस ०, उक्क० तिणि पलिदो० देसूणाणि । अट्ठक० - छण्णोक० अणुक्क० जह० एयस ०, उक्क अंतोमु० | स० अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० पुव्वकोडि धत्तं । २०० पंचिंदियतिरिक्खतिये मिच्छ० - सोलसक० - छण्णोक० उक्क० जह० एगस०, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । अणुक्क० तिरिक्खोघं । सम्म० - सम्मामि० उक्क० अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० तिण्णि पलिदो० पुव्वकोडि पुधत्तेणन्महियाणि । तिण्णिवेद० उक्क० अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० पुव्वको डिपुध० । वेदा जाणिव्वा । णवर जोणिणीसु इत्थिवेद० अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० वेसमया । १ २०१. पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० - मणुस अपज० मिच्छ०- णव स० उक्क० जह० एयस ०, उक्क० अंतोमु० । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० वेसमया । सोलस
एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा जान लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार पहलीसे लेकर छटी पृथिवीतक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए। इन पृथिवियों में हास्य और रतिका ग अरति और शोकके समान है ।
$ १९९. तिर्यञ्चों में ओघके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्योपम है । आठ कषाय और छह नोकषायोंके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उष्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। नपुंसकवेदके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है ।
$ २००. पचेन्द्रिय तिर्यश्वत्रिक में मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागके | उदीरकका भंग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है । तीन वेदों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है । किसके कौन वेद है यह जान लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि योनिनी तिर्यञ्चों में स्त्रीवेदके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है ।
$ २०१. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिध्यात्व और नपुंसक - वेदके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल