Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
$ १८२. आदेसेण णेरइय० ण स ० - अरदि- सोग० जह० जह० एगस०, उक्क ० वे समया । अजह० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीस सागरो० । एवं बारसक० - हस्स - रदिभय-दुर्गुछा० । णवरि अजह० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । सम्म० जह० जह० उक्क० एस० । अजह० जह० एस ०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । सम्मामि०अणताणु०४ ओघं । मिच्छ० जह० जहण्णुक्क० एस० । अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरोव० । एवं सत्तमाए । णवरि सम्म० जह० जह० एस ०, उक्क० वे समया । एवं पढमादि जाव छट्टित्ति । णवरि सगद्विदीओ | अरदि-सोगं हस्स-रदिभंगो | णवरि पढमाए सम्म० जह० जहण्णुक्क० एस० ।
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$ १८३. तिरिक्खेसु मिच्छ० जह० अणुभागुदी ० जह० उक्क० एयस० । अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० अनंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । सम्म० जह० जहण्णुक्क० एगस० । अजह० जह० एस ०, उक्क० तिष्णि पलिदो० देसूणाणि । सम्मामि०अकसाय० ओघं । अट्ठक० - छण्णोक० पढमपुढ विभंगो । इत्थवे ० - पुरिसवे ० - णवुंस०
$ १८२ आदेश से नारकियों में नपुंसकवेद, अरति और शोकके जघन्व अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है । इसी प्रकार बारह कषाय, हास्य, रति, भय और जगुप्साकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग ओघ के समान है । मिथ्यात्व के जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके जघन्य अनुभाग के उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । इसी प्रकार पहली से लेकर छटी पृथिवी तकके नारकियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए । अरति और शोकका भंग हास्य और रतिके समान है । इतनी विशेषता है कि पहली पृथिवीमें सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
$ १८३. तिर्यों में मिध्यात्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य अनुभाग के उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट का अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनोंके बराबर है । सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्योपम है । सम्यग्मिथ्यात्व और आठ कपायोंका भंग ओघके समान है। आठ कषाय और छह नोकषायोंका भंग पहली पृथिवीके समान है | स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक वेदके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक