Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए एयजीवेण कालो
६९
$ १७५. पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० - मणुसअपज० सव्वपय ० उक्क० जह० एयस०, उक्क० वे समया । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । मणुसतिये पंचिंदियतिरिक्खतियभंगो | णवरि सम्म० अणुक्क० जह० अंतोमु० । पजत्त० जह० एस० ।
$ १७६. देवेंसु मिच्छ० उक्क० अणुभागुदी० जह० एगस०, उक्क० वे समया । अणुक्क० जह० एस ०, उक्क० एक्कत्तीस सागरोव० । एवं पुरिस वेद० । णवरि अणुक्क० जह० एस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । एवमित्थिवेद० । णवरि अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० पणवण्णं पलिदोवमाणि । सम्मामि ० - हस्स - रदि० ओघं । सोलसक० - अरदिसोग - भय - दुगुंछा० पढमाए भंगो । सम्म० उक्क० जहण्णुक० एगसमओ | अणुक० जह० एस ०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । एवं भवणादि जाव णवगेवञ्जाति । णवरि सगदी । हस्स - रदि० अरदि - सोगभंगो | णवरि भवण ० - वाणवें ० - जोदिसि० सम्म ०
अनुभागके उदीरकका उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण कहा है। मनुष्य पर्याप्तकों में भी नपुंसकवेदकी अपेक्षा इसी प्रकार जान लेना चहिए। शेष कथन सुगम है ।
$ १७५. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । मनुष्यत्रिकमें पञ्चन्द्रियतिर्यञ्चत्रिकके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है तथा मनुष्यपर्याप्तकों में जघन्य काल एक समय है ।
विशेषार्थ – मनुष्यपर्याप्तकों में सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय कैसे घटित होता है इसका स्पष्टीकरण इसी प्रसंगसे प्रकृति उदीरणा अनुयोगद्वार में किया है, इसलिए उसे वहाँसे जान लेना चाहिए । शेष कथन सुगम है ।
$ १७६. देवों में मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल इकतीस सागरोपम है। इसी प्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है । इसी प्रकार स्त्रीवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेता है कि इसके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पचवन पल्योपम है । सम्यग्मिथ्यात्व, हास्य और रतिका भंग ओघके समान है । सोलह कषाय, अरति, शोक, भय और जुगुप्साका भंग पहली पृथिवीके समान है । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है। इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर नौ प्रवेयकतकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए | हास्य और रतिका भंग अरति और शोकके समान है । इतनी विशेषता है कि भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य