Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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६२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[वेदगो७ अण्णद० संजदासंजदस्स सव्वविसुद्धस्स । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिए । णवरि वेदा जाणियबा । जोणिणीसु सम्म० अट्ठकसायभंगो। पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज० मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० जह० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० तप्पाओग्गविसुद्धस्स ।
$ १५२. देवाणं णारयभंगो। णवरि इत्थवेद-पुरिसवेद० बारसकसायभंगो । णस० णत्थि । एवं सोहम्मीसाण । एवं सणकमारादि जाव णवगेवजा त्ति । णवरि इत्थिवेदो पत्थि । भवण-वाण-०-जोदिसि० देवोघं । णवरि सम्म० बारसकसायभंगो । अणुद्दिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म०-बारसक०-सत्तणोक० आणदभंगो । एवं जाव०।
* एगजीवेण कालो। $ १५३. सुगममेदं सुत्तं, अहियारसंभालणफलत्तादो। * मिच्छत्तस्स उकस्साणुभागउदीरगो केवचिरं कालादो होदि ?
१५४. सुगमं । * जहएणेण एयसमओ ।
$ १५५. तं जहा—अणुक्कस्साणुभागुदीरगो सण्णिमिच्छाइट्ठी एगसमयउक्कस्ससमयवर्ती सर्वविशुद्ध अन्यतर वेदकसम्यग्दृष्टिके होती है । आठ कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? सर्वविशुद्ध अन्यतर संयतासंयतके होती है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपना-अपना वेद जान लेना चाहिए । योनिनियोंमें सम्यक्त्वका भंग आठ कषायोंके समान है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? अन्यतर तत्प्रायोग्य विशुद्धके होती है।
$ १५२. देवोंमें नारकियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भंग बारह कषायोंके समान है। देवोंमें नपुंसकवेद नहीं है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पमें जानना चाहिए। इसी प्रकार सनत्कुमारसे लेकर नौ वेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए । इतनो बिशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है। भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सामान्य देवोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्बका भंग बारह कषायोंके समान है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकषायोंका भंग आनतकल्पके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
* एक जीवकी अपेक्षा कालका अधिकार है । $ १५३. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि इसका फल अधिकारकी सम्हाल करना है। * मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका कितना काल है ? $ १५४. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है। $ १५५. यथा-अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव एक