Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ मिच्छत्ताणुकस्साणुभागुदीरगस्स जहण्णकालो एगसमयमेत्तो। कधमुक्कस्ससंकिलेसादो पडिभग्गस्स अंतोमुहुत्तेण विणा एगसमयेणेव पुणो उकस्ससंकिलेसावूरणसंभवो चि हासंकणिजं, अणुभागबंधझवसाणट्ठाणेसु तहाविहणियमाणभुवगमादो ।
* उक्कस्सेण असंखेजा पोग्गलपरिया।
$ १५९. कुदो ? पंचिदिएहितो एइंदिएसु पइट्ठस्स उक्स्ससंकिलेसपडिलंभेण विणा आवलि० असंखे०भागमेत्तपोग्गलपरियट्टेसु परिब्भमणदसणादो।
* सम्मत्तस्स उकस्साणुभागुदीरगो केवचिरं कालादो होदि ? ६१६०. सुगमं । * जहएणुकस्सेण एगसमओ।
$ १६१. कुदो ? मिच्छत्ताहिमुहसव्वसंकिलिट्ठासंजदसम्मादिट्ठिचरिमसमयं मोत्तणण्णत्थ सम्मत्तुक्कस्साणुभागुदीरणाए संभवाणुवलंभादो ।
* अणुकस्साणुभागउदीरगो केवचिरं कालादो होवि ? $१६२. सुगमं ।
* जहरणेण अंतोमुहुत्तं । उदीरकका जघन्य काल एक समय प्राप्त हो गया।
शंका–उत्कृष्ट संक्लेशसे च्युत हुए जीवके अन्मुहूर्त हुए बिना एक समयके बाद ही पुनः उत्कृष्ट संक्लेशकी आपूर्ति कैसे सम्भव है ?
समाधान–यहाँ ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंमें उस प्रकारका नियम नहीं स्वीकार किया गया है। .
* उत्कृष्ट काल असंख्यात पुगदलपरिवर्तनप्रमाण है ।
$ १५९. क्योंकि पञ्चेन्द्रियोंमेंसे एकेन्द्रियोंमें प्रविष्ट हुए जीवके उत्कृष्ट संक्लेशकी प्राप्ति हुए बिना आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण पुद्गल परिवर्तनोंमें परिभ्रमण देखा जाता है।
* सम्यक्त्वके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका कितना काल है ? $ १६०. यह सूत्र सुगम है। जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
६ १६१. क्योंकि मिथ्यात्वके अभिमुख हुए सर्व संक्लेश परिणामवाले असंयतसम्यग्दृष्टिके अन्तिम समयको छोड़कर अन्यत्र सम्यक्त्वको उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा सम्भव नहीं है।
* अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका कितना काल है ? $ १६२. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल