Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ गुदी० कस्स ? अण्णद० तप्पाओग्गुक्कस्ससंकिलिट्ठस्स । मणुसतिये सव्यपय० उक्क० कस्स ? अण्णद० उक्स्ससंकिलिट्ठस्स मिच्छाइद्विस्स । णवरि सम्म०-सम्मामि० ओघं ।
5 १२३. देवेसु मिच्छ-सोलसक०-इत्थिवे०-पुरिसवे०-अरदि-सोग-भय-दुगुंछा० उक्क० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स मिच्छा० । सम्म०-सम्मामि०-हस्स-रदि० ओघं । भवणादि जाव सहस्सारे त्ति अप्पणो पयडि. उक्क० कस्स ? अण्णद० मिच्छाइद्विस्स उकस्ससंकिलिट्ठस्स । णवरि सम्म०-सम्मामि० ओघं । आणदादि णवगेवजा त्ति अप्पप्पणो पयडी० उक्क० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० तप्पाओग्गसंकिलिङ्कस्स मिच्छा। सम्म०-सम्मामि० ओघं । णवरि तप्पाओग्गसंकिलिदुस्स। अणुद्दिसादि सव्वट्ठा ति अप्पप्पणो पय० उक्क० कस्स ? अण्णद० तप्पाओग्गसंकिलिदुस्स वेदयसम्माइडिस्स । एवं जाव० । ___ * एत्तो जहरिणया उदीरणा।
$ १२४. एत्तो उवरि जहणिया उदीरणा अणुभागविसया सामित्तविसेसिदा कायव्वा त्ति भणिदं होइ ।
* मिच्छत्तस्स जहएणाणुभागुदीरणा कस्स ?
$१२५. सुगम की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है।
$ १२३. देवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, हास्य और रतिका भंग ओधके समान है । भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें अपनी-अपनी प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। आनतकल्पसे लेकर नौ प्रैवेयक तकके देवोंमें अपनी-अपनी प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाले अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवालेके होती है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें अपनी-अपनी प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाले अन्यतर वेदकसम्यग्दृष्टिके होती है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
* इससे आगे जघन्य अनुभाग उदीरणाके स्वामित्वका अधिकार है ।
$ १२४. इससे आगे स्वामित्व विशेषणसे युक्त अनुभागविषयक जघन्य उदीरणा करनी चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? ६ १२५. यह सूत्र सुगम है।