Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाएं सामित्त कस्स ? अण्णद० पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स अट्ठवासजादस्स करभस्स । हस्स-रदि० उक्क० कस्स ? अण्णद० सहस्सारदेवस्स उक्स्ससंकिलिट्ठस्स । सम्म० उक्कस्साणु० कस्स ? अण्ण० मिच्छत्ताहिमुहस्स तप्पाओग्गुकस्ससंकिलिट्ठस्स चरिमसमयसम्माइट्ठिस्स। सम्मामि० उक्क० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० मिच्छत्ताहिमुहस्स तप्पाओग्गसंकिलिगुस्स चरिमसमयसम्मामिच्छाइट्ठिस्स ।
$ १२१. आदेसेण णेरइय० मिच्छ०-सोलसक०-हस्स-रदि० उक्क अणुभागुदी० कस्स ? अण्ण० मिच्छाइद्विस्स उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स । सम्म०-सम्मामि०-णqसय०अरदि-सोग-भय-दुगुंछा० ओघं । पढमादि जाव सत्तमा त्ति मिच्छ-सोलसक०-सत्तणोक० उक्क० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० मिच्छाइद्विस्स उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स। सम्म०-सम्मामि० ओघं ।
$ १२२. तिरिक्खेसु ओघं । णवरि हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछा-णqसय० उक्क० अणुभागुदी० कस्स ? अण्ण० मिच्छाइट्ठिस्स उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिये । णवरि पजत्तएसु इत्थिवेदो णत्थि । जोणिणीसु पुरिस०-णस० णस्थि । पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज० मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० उक्क० अणुभाकिसके होती है ? आठ वर्षकी आयुवाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक ऊँटके होती है। हास्य
और रतिकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले अन्यतर शतार-सहस्रार कल्पके देवके होती है। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले मिथ्यात्वके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीवके होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले मिथ्यात्वके अभिमुख हुए अन्यतर अन्तिम सममयवर्ती सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवके होती है।
$ १२१. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, हास्य और रतिकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है? उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले अन्यतर मिथ्यादष्टिके होती है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, नपुसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साका भंग ओघके समान है। पहली पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है।
$ १२२. तिर्यञ्चोंमें ओघके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा और नपुसकवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले अन्यतर मिथ्यांदृष्टिके होती है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्च पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है और योनिनियोंमें पुरुषवेद तथा नपुंसकवेद नहीं हैं। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले अन्यतर जीवके होती है। मनुष्यत्रिकमें सब प्रकृतियों