Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सामित्तं
* संजमाहिमुहचरिमसमयअसंजदसम्माइहिस्स सव्वविसुद्धस्स ।
१३४. संजमाहिमुहो असंजदसम्माइट्ठी संजमाहिमुहचरिमसमयमिच्छाइद्विविसोहीदो अणंतगुणाए विसोहीए विसुज्झमाणो समयं पडि अणंतगुणहीणमपञ्चक्खाणकसायाणुभागमुदीरेदि जाव अंतोमुहुत्तमेत्तविसोहिकालचरिमसमयो ति तदो विसयंतरपरिहारेणेत्येव पयदजहण्णसामित्तमवहारेयव्वं ।
* पञ्चक्खाणकसायस्स जहएणाणुभागमुदीरणा कस्स ?
१३५. सुगमं । * संजमाहिमुहचरिमसमयसंजदासंजदस्स सव्वविसुद्धस्स ।
$ १३६. एत्थ विसेसगुणहाणपरिहारेण संजदासंजदम्मि सामित्तविहाणस्स कारणं पुव्वं व वत्तव्वं ।
* कोहसंजलणस्स जहरणाणुभागउदीरणा कस्स? ६१३७. सुगमं । * खवगस्स चरिमसमयकोधवेदगस्स।
६१३८. जो खवगो कोधोदएण खवगसेढिमारूढो अट्ठकसाए खविय पुणो जहाकममंतरकरणं समाणिय णवंसय०-इत्थिवेद-छण्णोकसाए पुरिसवेदं च जहावुत्तेण
* संयमके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध अन्तिम समयवर्ती असंयतसम्यग्दृष्टिके होती है। ___ १३४. संयमके अभिमुख हुआ असंयत सम्यग्दृष्टि जीव संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि जीवकी विशुद्धिसे अनन्तगुणी विशुद्धिसे विशुद्धिको प्राप्त होता हुआ प्रति समय अनन्तगुणे हीन अप्रत्याख्यान कषायके अनुभागको अन्तर्मुहूर्तमात्र विशुद्धिकालके अन्तिम समय तक उदीरित करता है। इसलिए विषयान्तरके परिहार द्वारा यहीं पर प्रकृत जघन्य स्वामित्वका निश्चय करना चाहिए।
* प्रत्याख्यानावरण कषायकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? $१३५. यह सूत्र सुगम है। * संयमके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध अन्तिम समयवर्ती संयतासंयतके होती है।
$ १३६. यहाँपर विशेषगुणस्थानके परिहारद्वारा संयतासंयतके जो स्वामित्वका विधान किया है उसका कारण पहलेके समान कहना चाहिए।
* क्रोधसंज्वलनकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? $ १३७. यह सूत्र सुगम है।। * अन्तिम समयवर्ती क्रोधवेदक क्षपकके होती है।
$ १३८. क्रोधके उदयसे क्षपकणिपर आरूढ हुआ जो क्षपक आठ कषायोंका क्षय कर पुनः क्रमसे अन्तरकरण समाप्तकर नपुसकवेद, स्त्रीवेद, छह नोकषाय और पुरुषवेदका यथोक्त क्रमसे नाशकर तदनन्तर अश्वकर्णकरण और कृष्टिकरण कालको बिताकर क्रोधकी