Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०.६२] ___ उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णा 2६८०. संपहि एदेहिं अणियोगद्दारेहिं जहाकममुत्तरपयडिअणुभागुदीरणं परूवेमाणो सण्णाणुगममेव ताव परवेदुमुत्तरसुत्तपवंधमाह-
Virt * तत्थ पुव्वं गमणिज्जा दुविहा सरणा-घाइसरणा गणसराणा च।
८१. तत्थ तेसु अणियोगद्दारेसु पुव्वं पढममेव गमणिज्जा अणुमग्गियच्या दुविहा सण्णा-घाइसण्णा द्वाणसण्णा चेदि । तत्थ जा सा घादिसपणा सा दुविहां सध्यघादिदेसघादिभेदेण । ठाणसण्णा चउव्विहा लदासमाणादिसहावमेदेगामिषणत्तादो। एवमेसा दुविहा सण्णा पुव्वमेत्थ गमणिज्जा, अण्णहा अणुभागविसंयणिच्छयाणु पत्तीदो। * ताओ दो वि एक्कदो वत्तइस्सामो।
ETTES $ ८२. ताओ दो वि सण्णाओ एयपघट्टयेणेव वत्तइस्सामो, पुंध बुध परूवणाए गंथगउरवप्पसंगादो।
* तं जहा–मिच्छत्त-बारसकसायाणमणुभागउंदीरणा सव्वधादी।
६८३. कुदो ? एदेसिमणुभागोदीरणाए सम्मन-संजमगणाण गिरवसेसविणासदसणादो । पञ्चक्खाणकसायोदोरणाए संतीए वि देससंजमो समुवलब्भदि तदो ण तेसिं सव्वघादित्तमिदि णासंकणिजं, सयलसंजममस्सिऊण तेसि सव्वधादित्तसमत्थणादों।
$ ८०. अब इन अनुयोगद्वारोंका अवलम्बन लेकर यथाक्रम उत्तर प्रकृति अनुभाग उदीरणाकी प्ररूपणा करते हुए संज्ञानुगमका ही सर्व प्रथम कथन करनेके लिए, उत्तरसूत्रप्रवन्धको कहते हैं
* वहाँ सर्व प्रथम घातिसंज्ञा और स्थानसंज्ञा यह दो प्रकारकी संज्ञारजानने योग्य है। .. $ ८१. वहाँ उन अनुयोगद्वारोंमें 'पुत्वं' अर्थात् सर्व प्रथम गमणिना' अर्थात् मार्गण करने योग्य है-घातिसंज्ञा और स्थानसंज्ञा यह दो प्रकारकी संज्ञा वहाँ जो धातिसंज्ञा हैं वह सर्वघाति और देशघातिके भेदसे दो प्रकारकी है। लतासमान आदिस्विभावके भेदसे भिन्नताको प्राप्त हुई स्थानसंज्ञा चार प्रकारकी है। इस प्रकार यह दो प्रकारको संज्ञा सर्व प्रथम यहाँ जानने योग्य है, अन्यथा अनुभागविषयक निश्चय नहीं हो सकता। * उन दोनों ही संज्ञाओंको एकसाथ बतलावेंगे। Terry
८२. उन दोनों ही संज्ञाओंको एक साथ ही बतलावेंगे, क्योंकि पृथक-पथक कथन करने पर ग्रन्थविस्तारका प्रसंग उपस्थित होता है।
* यथा-मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी अनुभाम उदीरणा सर्वघाति है।
$ ८३. क्योंकि इन प्रकृतियोंकी अनुभाग उदीरणासे सम्यक्त्व और संयमगुणोंका पूरी तरहसे विनाश देखा जाता है।
FATHE - शंका-प्रत्याख्यान कषायोंकी उदीरणाके होनेपर भी देशसंयमकी प्राप्ति होती है, इसलिए उनका सर्वघातिपना नहीं बनता ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सकलसंयमका अवलम्बन लेकर उनके सर्वघातिपनेका समर्थन किया है।