Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ मणुसतिये । आदेसेण णेरइय० जह० वड्डी हाणी अवट्ठाणाणि तिण्णि वि सरिसाणि । एवं सव्वणेरइय०-सव्वतिरिक्ख-मणुसअपज्ज०-सव्वदेवा त्ति । एवं जाव० ।
$ ६४. वड्डिअणु भागुदीरणाए तत्थ इमाणि तेरस अणिओगद्दाराणि-समुक्कित्तणा जाव अप्पाबहुए त्ति । समुक्कित्तणाणु० दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण अत्थि छवड्ढि-छहाणि-अवढि०-अवत्त अणुभागुदी० । एवं मणुसतिए । एवं चेव सव्वणेरइय-सव्वतिरिक्ख-मणुसअपज्ज०-सव्वदेवा त्ति । णवरि अवत्त० णत्थि । एवं जाव०। ___$ ६५. सामित्ताणु० दुविहो णि०–ओघेण आदेसेण य । ओघेण अस्थि छवडिहाणि-अवट्ठाणं कस्स ? अण्णद० सम्माइट्ठिस्स मिच्छाइडिस्स वा । अवरा० भुज०भंगो। एवं मणुसतिए । एवं सव्वणेरइय-सव्वतिरिक्ख-सव्वदेवा गि । णबरि अवन. णत्थि । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज०-मणुसअपज्ज०-अणुद्दिसादि सव्वट्ठा चि छवडि-हाणि-अवट्ठि० कस्स ? अण्णद० । एवं जाव० ।
६६. कालाणु० दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण पंचवडिहाणि० जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे भागो। अणंतगुणवड्डि-हाणि. अवस्थान अनन्तगुणा है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान तीनों ही समान हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त और सब देवोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
६४. वृद्धि अनुभाग उदीरणाका प्रकरण है। उसमें ये तेरह अनुयोगद्वार हैंसमुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक । समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघ और आदेश । ओघसे छह वृद्धि, छह हानि, अवस्थित और अवक्तव्य अनुभाग उदीरणा है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च मनुष्य अपर्याप्त और सब देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य अनुभाग उदीरणा नहीं है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए।
६५. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थानका स्वामी कौन है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव स्वामी है। अवक्तव्य पदका भंग भुजगारके समान है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च और सब देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त तथा अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थित पदका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
$ ६६. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच वृद्धि और पाँच हानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असं.