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ज्ञान है परमयोग
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MAHARIHARomania
खुल्द भी जिस पे हो कुर्बा वो दियार आ ही गया
शराब है, नशा है। बोध नहीं, जागरण नहीं। डूबो, अपने में। महावीर कहते हैं, जो इन खिलौनों से जग गया, बात हो गयी। देखना ही है जो इंसान में भगवान तुम्हें इधर खिलौनों से छूटे कि वहां सत्य हाथ में आया नहीं। इधर आदमी को ही आदमी की नज़र से देखो सपना टूटा कि वहां आंख खुली नहीं। आंख का खुलना और चल रहे हैं जो उन्हें चल के डगर से देखो सपने का टूटना युगपत है। एकसाथ है। ऐसा थोड़े ही है कि तैरनेवाले को तट से न, लहर से देखो पहले अज्ञान मिटेगा, फिर ज्ञान होगा। अज्ञान मिटा कि ज्ञान डूबना पड़े। यह जो डूब गये, उनकी बातें हैं। जो खो गये परम हुआ, ज्ञान हुआ कि अज्ञान मिटा। एक साथ! एक पल में! सागर में, उनके वचन हैं।। रुखसत ऐ हमसफरो! अलविदा। कहने लगता है वैसा व्यक्ति | चल रहे हैं जो उन्हें चल के डगर से देखो अपने साथियों से कि अब विदाई आ गयी, अब तुम चलो जिस ऐसे किनारे बैठकर मत देखते रहना। तुम्हें पता न चलेगा रास्ते पर तुम चल रहे हो, लेकिन मैं तो विदा हुआ
उनका आनंद। दौड़नेवाले का आनंद बैठनेवाले को कैसे पता रुखसत ऐ हमसफरो! सहरे-निगार आ ही गया
चलेगा! कभी तुम दौड़े हो सुबह के सूरज में, सुबह की ताजी मेरी मंजिल आ गयी।
हवाओं में, जब मलय-बहार सब तरफ घेर लेती है, सुबह की खुल्द भी जिस पे हो कुर्बा वो दियार आ ही गया
नयी सुगंध? तुम दौड़े हो हवाओं में, तुमने किया है संघर्ष? और स्वर्ग भी जिस पर कुर्बान हो जाएं, वह खुशी का नगर, नहीं तो तुम्हें पता नहीं चलेगा, वह जो पुलक, वह जो ताजगी उस वह अंतःपुर आ गया।
क्षण घेर लेती है दौड़नेवाले को। तुम बैठे किनारे से देखते रहोगे, हमने इस देश में आत्मा को एक और नाम दिया है। वह नाम दौड़नेवाला भी दिखायी पड़ता है, हवा के झपेड़े भी दिखायी है पुरुष। पुरुष उसी धातु से बनता है, जिससे पुर। पुरुष का पड़ते हैं क्योंकि उसके वस्त्र उड़े जा रहे हैं, उसके बाल उड़े जा रहे अर्थ होता है, भीतर के नगर में रहनेवाला।
हैं, और यह भी दिखायी पड़ता है कि बड़ा ताजा और बड़ा प्रसन्न रुखसत ऐ हमसफरो। सहरे-निगार आ ही गया
है, लेकिन भीतर उसके जो घट रहा है, वह तो तुम कैसे जानोगे, खुल्द भी जिस पे हो कुर्बा वो दियार आ ही गया
कैसे देखोगे? इधर खिलौने हाथ से छूटे नहीं, इधर तुम खाली हुए संसार के चल रहे हैं जो उन्हें चल के डगर से देखो उपद्रव से, वहां तुम भरे नहीं परमात्मा की परम शांति से। तैरनेवाले को तट से न, लहर से देखो। 'हे भव्य, तू इस ज्ञान में सदा लीन रह।'
तैरनेवाले का कुछ मजा है। वह तैरनेवाला ही जानता है। वह - किस ज्ञान में? शास्त्र के नहीं, शब्द के नहीं। स्वयं के, ध्यान तुम्हें बताना भी चाहे तो नहीं बता सकता। 'गूंगे केरी सरकरा।' के, अपने अनुभव के अंतर-संगीत में डूब।
उसने स्वाद तो लिया है, लेकिन कैसे कहे? कहने को कुछ 'इसी में सदा संतुष्ट रह। इसी में तृप्त हो। इसी से तुझे उत्तम | उपाय नहीं है। गूंगा ज्यादा से ज्यादा तुम्हारा हाथ पकड़कर खींच सुख प्राप्त होगा।'
सकता है कि आओ, तुम भी रस ले लो, तुम भी चखो इस स्वाद महावीर कहते हैं, उत्तम सख। जो सख कभी न छिने, वह को। तैरनेवाले से तम पछो कि क्या है मजा? यह पानी के उत्तम। जो आए तो आए, फिर जाए न, वह उत्तम। जो आए तो थपेड़ों में उलझना तेरा, यह पानी के साथ नाच, यह नृत्य लहरों सदा के लिए आ जाए, जो आए तो शाश्वत आ जाए, जो मिले में, क्या है मजा? तो वह कहेगा, आओ, खींचेगा तुम्हारा हाथ। तो फिर जिससे बिछड़ना न हो, वह उत्तम। जिस सुख में वही महावीर कर रहे हैं। वही सदा सत्पुरुषों ने किया है। खींचते बिछड़ना हो, वह केवल दुख का ही एक चेहरा है। जिस हंसी में हैं तुम्हारा हाथ कि आओ। तुम कहते हो, पहले समझाओ। तुम
आंसू छिपे हों, वह रोने का ही एक ढंग है। जहां से हट जाना कहते हो, पहले हमें पक्का भरोसा आ जाए कि कुछ सार है, तो पड़े, वहां रहना केवल हटने की तैयारी है। जिस योग में वियोग उतरेंगे। यहीं अड़चन है। संभव हो, वह योग ही नहीं। वह केवल योग का धोखा है। वह | मैंने सना है, मुल्ला नसरुद्दीन तैरना सीखने नदी पर गया था।
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