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प्रश्न-सार
कुछ दिन ध्यान में जी लगता है, कुछ दिन भजन में;
लेकिन एकाग्रता कहीं भी नहीं होती।
आकस्मिक रूप से भगवान से मिलन हुआ और संन्यास भी ले लिया।
क्या यह ध्यान कायम रहेगा?
भगवान श्री कृष्ण के सिरदर्द के लिए ज्ञानियों ने पैर की धूल देने से इनकार किया
लेकिन गोपियों ने दे दी—इसका रहस्य क्या है?
क्या ध्यान की मृत्यु और प्रेम की मृत्यु भिन्न होती है?
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