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रसमयता और एकाग्रता
वह। अपने काम में लीन है।
एकाग्रता जरूर आती है, मगर परिणाम की तरह आती है। रथचाइल्ड ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक भिखारी एकाग्रता साधन नहीं है; जहां रस लोगे वहीं घट आती है। रस आया, पांच बजे सुबह उसका दरवाजा खटखटाने लगा। वह के पीछे बंधी चली जाती है। रस की छाया है। बड़ा नाखुश हुआ। पांच बजे सुबह नींद से भरे उसको उठाया। तो तुम कहीं भी रस लो। अगर मंदिर में रस न आता हो, फिक्र वह बड़ा झल्लाता हुआ बाहर आया। ऐसे वह देना पसंद करता छोड़ो। फिर मंदिर में परमात्मा तुम्हारे लिए नहीं घटेगा। जहां रस था। दान उसका रस था। लेकिन यह कोई वक्त है? ही नहीं है, वहां एकाग्रता नहीं होगी। एकाग्रता नहीं होगी,
तो उसने भिखारी को कहा कि सनो जी। यह कोई समय है? | परमात्मा कहां होनेवाला है। भिखारी ने कहा कि आप भी सुनो। आप बैंकिंग का धंधा करते अगर तुम्हें बांसुरी के गीत में रस आता है तो वहीं तुम्हारा हैं, मैं कोई सलाह तो देता नहीं। यह हमारा धंधा है। इसमें हम परमात्मा तुम्हें मिलेगा। अगर नर्तक की पायलों में तुम्हें रस सलाह किसी की मानते नहीं।
| आता है तो तुम्हारा परमात्मा वहीं नाचेगा। रथचाइल्ड ने प्रकाश जलाया कि इस आदमी को देखना तुम्हारे परमात्मा की खोज तुम्हारे रस से ही तय होगी। रसो वै चाहिए, जो दुनिया के बड़े से बड़े करोड़पति को कह सकता है सः। उस परमात्मा का स्वभाव रस है। किसी शास्त्र ने नहीं कहा कि सुनो, तुम बैंकिंग का धंधा करते हो, हम तुम्हें कभी सलाह | कि परमात्मा का स्वभाव एकाग्रता है। सच्चिदानंद! वह रस की देते नहीं। हमारी सलाह का कोई मतलब भी नहीं, क्योंकि हमें | बात है। तुम्हें जहां आ जाए रस, जहां आ जाए आनंद, जहां कोई अनुभव भी नहीं। तुम हमें सलाह मत दो। हम जन्मजात उमंग उठे, जहां तुम खिल उठो। फिर वह कुछ भी हो। चाहे भिखारी हैं।
खेल हो, तो प्रार्थना बन गई। और ऐसे तुम बैठे-बैठे प्रार्थना उस आदमी के चेहरे को देखा, वह बड़ा प्रसन्न आदमी था। करते रहो, भजन करते रहो, ध्यान करते रहो; रस उमगे नहीं, रथचाइल्ड ने लिखा, मैं मंत्रमुग्ध हो गया। यह हिम्मत भिखारी मेघमल्हार बजे नहीं, हृदय गुनगुनाए नहीं-ऐसे तुम करते चले की नहीं, सम्राट की होती है। रथचाइल्ड को ऐसा कहना, जिसके जाओ जबर्दस्ती, यंत्रवत, करनी चाहिए, कर्तव्यवश, लोग कहते पास भीख मांगने आए कि चुप! सलाह मत देना। मेरे धंधे को | हैं इससे रस मिलेगा इसलिए कर रहे हैं। मैं भलीभांति जानता हूं।
नहीं, जहां रस मिलता है वहीं परमात्मा आता है। रथचाइल्ड ने उसे खूब दिया; और कहा, मैं खुश हुआ इस इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि मेरे पास तुम्हें देने के लिए कोई बात से कि कोई आदमी अपने भिखमंगेपन की भी इतनी प्रतिष्ठा अनुशासन नहीं है। क्योंकि अनुशासन कोई भी होगा, पराया रखता है।
होगा, दूसरे का होगा। तुम्हें अपना अनुशासन खोजना पड़ेगा। कभी तुम्हें राह का भिखारी भी प्रसन्न मिल सकता है। प्रसन्नता प्रत्येक व्यक्ति को अपना मार्ग खोजना पड़ेगा। मैं इशारे देता हूं। का कोई संबंध इससे नहीं कि तुम्हारे पास क्या है। जो भी तुम्हारे उन इशारों से तुम अपना मार्ग समझने की कोशिश करो। पास है, उसमें अगर रस है तो प्रसन्नता है। तुम अगर हाथ के | कबीर ज्ञान को भी उपलब्ध हो गए तो भी कपड़ा बुनते रहे। भिक्षापात्र को भी गीत गुनगुनाते हुए ढो रहे हो तो आनंद है। और जुलाहापन उन्होंने छोड़ा नहीं। किसी ने पूछा कि अब तो आप तुम्हारे पीछे स्वर्णरथ चल रहे हैं और तुम मुर्दा, बुझे, तो कुछ अर्थ बंद करें। कभी सुना नहीं कि कोई बुद्धपुरुष और कपड़े बुनता नहीं है।
रहा और जुलाहा बना रहा और बाजार में कपड़े बेचने जाता एकाग्रता मत पूछो। यद्यपि तुम्हें यही सिखाया गया है स्कूल | रहा। अब तो छोड़ो। से लेकर विश्वविद्यालय तक। और तुम्हारे तथाकथित धर्मगुरु लेकिन कहते हैं, कबीर ने कहा, इसी कपड़े के बुनने ने तो मुझे
भी तुम्हें यही सिखाते हैं कि-एकाग्रता। मैं तुमसे कहता हूं, परमात्मा से मिलाया। इसे कैसे छोड़ दूं? यह मेरी प्रार्थना। यह | रसमग्नता। वह शब्द हटा दो। क्योंकि वह शब्द सीधा काम का | मेरी पूजा। यह मेरी अर्चना। ही नहीं है।
'झीनी झीनी बीनी रे चदरिया।'
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